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________________ सम्यग्दृष्टेलक्षणानि भावकधर्म- होइत्ति भावत्थो । के पुण सम्मत्ते पडिवन्ने गुणा भवंति ?, भन्नइ-सुस्सुसाई उ होंति ददति, सुस्सूसा-धम्मसत्थसवणापश्चाशक-II भिलासो आइसहाओ अन्ने धम्मरागादयो उवरि भन्नमाणा घेप्पंति, हुंति-उप्पजंति, मिच्छत्तखओवसमखयउवसमाओ चूर्णिः । चेव, एएणवि सम्मत्तस्स फलं भणियं, दढं-अइसएण, जारिसेहिं तेहिं सम्मत्तं लक्खिाइति ॥ ३॥ सुस्साई उ भवंतित्ति पुर्व भणियं, अतो ते भन्नतिसुस्सूस धम्मराओ गुरुदेवाणं जहासमाहीए । वेयावच्चे नियमो वयपडिवत्तीऍ(इ) भयणा उ॥४॥ सोउं इच्छा सुस्सूसा-पहाणबोहहेतुधम्मसत्थसुणणाभिलासो, सा पुण सुस्सूसा वियड्ढाइगुणजुत्ततरुणनरकिन्नरगेयसवणरागाओवि अहियतरा सम्मत्ते सइ होति । तहा धम्मरागोत्ति, धम्मो-सुयचरित्तरूवो, तत्थ सुयधम्मरागो सुस्सूसापएण चेव भणिओ, अतो इह धम्मरागो-चारित्तधम्मरागो घेप्पइ, सो धम्मरागो कम्मदोसाओ चारित्तधम्मअकरणेवि कंतारुतिनदरिद्दछुहाकिलंतमाहणघयपुनभोयणाभिलासाओवि अहिगो सम्मत्ते विजमाणे होइ । तहा गुरुदेवाणं जहासमाहीए वेयावच्चे नियमोत्ति, गुरू-धम्मदेसगा आयरियाई, देवा य तिलोयपूयणिजा अरहंता तेसिं जहासमाहीए-जहासत्तीए, वेयावच्चे-तप्पडिवत्तिविस्सामणपूयणाइए, नियमो-अवस्सं कायवंति पडिवत्ती सम्मत्ते सति होइत्ति, किं जहा सम्मत्ते होंते सुस्सुसाइया गुणा होंति, तहा किं वयाणिवि भवंतित्ति ?, एयमासंकिय आह-वयपडिवत्तीए भयणा उत्ति वयाणंअणुब्बयाईणं पडिवत्ती-अन्भुवगमो अंगीकरणं वयपडिवची तीए पुण भयणा-वियप्पणा, सम्मत्ते होते वयाणि कयाइ भवंति | कयाइ न भवंति इत्यर्थः ॥ ४ ॥ भयणाकारणमेव भन्नइ ॥६ ॥ Jain Education in For Private Personel Use Only Ciw.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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