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________________ भक्त. प्रत्याख्यानविधिः भावकधर्म- तिएसु एवमेव पवेसो जेण, ण तहाविहपयोयणं विणा परघरं पविसइत्ति भणिय होइ, पायपुंछणंति स्योहरणं, ओसहमेपश्चाशक सजेणंति ओसहं-एगदवसरूवं, मेसजं-अणेगदवसमुदायरूवं, पाडिहारियं नाम जंकजसम्मत्तीए पचप्पिणिजइ, पीट-आसणं, चूर्णिः ।। फलग-अवटुंभणकट्ठ, सेजा-वसही, अहवा जत्थ पसारियपाएहिं सुबह सा सेजा, संथारो लहुतरं सयणमेव, सीलवयाणि अणुव्वयाणि गुणा-गुणव्वयाणि विरमणाणि-रागाइविरइपगारा पच्चक्खाणाणि--नमोक्कारसहियाइणि पोसहोववासो-अट्ठमिमाइ. ॥१२७॥ पव्वेसु आहाराइपरिचायोत्ति । " एवं च विहरिऊण दिक्खाभावंमि चरणमोहाओ। पतमि चरमकाले करेज कालं जहा विहिणा ॥१॥ सावगधम्महिगारेवि एत्थ जइगोयरंपि तं भणिमो । तब्भणणा इयरो वि हु विसेसओ साहियो होइ ।। २ ।। मरणं च होइ सपरकमाण अपरक्कमाण य तहेव । एक्केकंपि य दुविहं निवाघाए य वाघाए ॥३॥" तत्थ वाघाओ जहा-अच्छभल्लेण कन्ना ओट्ठा य खइया, रोगेण वा वाघाओ हवइ, सो वाघाओ दुविहो-कालसहो होइ इयरो य । कालसहो नाम जत्थ चिरेण मरइ, जहा-पूइगोणसेण डको तं डककालमतिकम्म वीसइरत्ताइसु मरइ, इयरो नाम तदिवसमेव मरिउकामो भत्र पञ्चक्खाइ, निवाघाए पुण एस विही पाएण भत्तपञ्चक्खाणस्स गणनिसिरणं कायक्वं, ततो परगणे गंतुं भत्तपच्चक्खाणं कायवं, किं कारणं तवोकिलन्ता संलिहियसरीरा परगणं गच्छंति ?, मन्नइ-आयरियस्स सीसाणं आयरियाणुरागेण रोयण कंदणाईणि दटुं सोउं च कारुनमुप्पजेजा, एवं च झाणवाघाओ होजा, तहा-"सगणे आणाहाणी अप्पत्तिय होइ एवमाईय। परगणे गुरुहै। कुलवासो अप्पत्तियवजिओ होइ ॥१॥" आणाहाणित्ति ठवियगणहरस्साणं केई अकरेमाणे दट्टण अपत्तियं उप्पञ्जइत्ति । इयाणिं संलेहणा AMACHARBOARDCORECAROCRECORG 56ECTROCHOCTOCREACROCEACOCOCCAC% १२७॥ Jain Education Ins al For Private & Personel Use Only Golwww.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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