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बावकधर्म-12
सामायि
पञ्चाशकचूर्णिः ।
स्वरूपम्
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॥१३॥
तम्भणणाओ भणियाणि गुणवयाणि | इयाणि सिक्खावयाणि भन्नति, तत्थ सिक्खा-अब्भासो ताए जुत्ताणि वयाणि सिक्खावयाणि पुणो पुणो आसेवणीयाणि इत्यर्थः, ताणि पुण सामाइयाईणि चत्तारि, तत्थ ताव सामाइयं भन्ना
सिक्खावयं तु एत्थं सामाइयमो तयं तु विन्नेयं । सावजेयरजोगाण बजणासेवणारूवं ॥ २५ ॥
सिक्खावयंतिपयस्स अत्थो कहिओ चेव, अहवा दुविहा सिक्खा-गहणसिक्खा, आसेवणसिक्खा य, तत्थ गहणसिक्खा-सुत्तपढणाइसरूवा, आसेवणसिक्खा पुण उवहिपडिलेहणपप्फोडणाइविसया एवंविहसिक्खासहियं वयं | सिक्खावयं, तुसदो पुणसहत्थे, एत्थंति-सावगधम्मे, सामाइयंति-समस्स रागद्दोसरहियस्स आओ-लाभो समाओ, समभावो हि जीवो पइक्खणं अपुवेहिं नाणदंसणचरित्तपजवेहिं निरुवमसुहहेऊहिं अहोकयचिंतामणिकप्पहुमोवमेहिं संजुजए, एवंविहलाभकारणं किरियाणुट्ठाणं सामाइयं बुच्चइ, उसहो पायपुरणे, तयं तुत्ति तं पुण सामाइयं विनेयं-नायवं सावजेयरजोगाण बजणासेवणारूवंति सावञ्जजोगाणं-असुभवावाराणं वजणं-परिहरणं, निरवजजोगाणं-सुभवावाराण आसेवणं-अणुट्ठाणं सामाइयस्स सरूवंति, एत्थ पुण इमा सामायारी-" इह सावगो दुविहो-इड्पित्तो अणिड्पित्तो य, जो सो अमिड्डिपत्तो सो चेइयहरे वा साहुसमीवे वा गिहे वा पोसहसालाए वा जत्थ वा वीसमति निवावारो वा अच्छइ तत्थ सवत्थ सामाइयं करेति, चउसु ठाणेसु पुण नियमा करेइ, तंजहा-चेइयहरे साहुसमीवे पोसहसालाए वा घरे वा आवस्सयं करतोत्ति, तत्थ जइ साहुसमीवे करेइ, तया एसो विही-जदि परं परमयं नत्थि, जइ केणवि सह विवाओ नस्थि, जइ कस्सवि दवं न धरेइ, मा होउ तेण समं कड्डाकढिति, जइ य धरणगं दटुं न गेण्हइ, मा होउ भंडणति, जइ
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॥९३॥
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