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________________ श्रावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः । आलोकस्य सप्तभेदाः ॥६२॥ तेणियं होइ' सत्तविहालोगो पुण इमो-"ठाण १ दिसि २ पगासणया ३ भायण ४ पक्खेवणा य ५ गुरु ६ भावे ७। सत्तविहो आलोगो सयावि जयणा सुविहियाण ॥१॥"ति, इह दुविहा साहुणो भवंति मंडकिउवजीविणो मंडलिअणुवजीविणो य, उपजीविणो पसिद्धा, अणुवजीविणो इमे-" आगाढजोगवाही निझूढत्तठिया अ पाहुणगा। सेहा सपायच्छित्ता वाला वुड्डेवमाईया ॥१॥" आगाढजोगवाहिणो-गणिजोमवाहिणो, ते मंडलिं नोवजीवंति, निज्मूढत्ति अमणुन्ना कारणंतरेण अच्छंति, तेवि पुढो भुंजंति, अत्तद्विगा य पुढो भुंजंति, जेण ते अन्नस्स न किंचि विगिण्हंति, तहा पाहुणगा पुढो भुंजंति जओ तेसिं पढममेव पाउग्गं पडिपुग्नं दिजइ अओ ते एगागिणो HAAFRAMA RIMEAfrics gal सुनाdिfilande BाEिRadiपाया RammandA HAE.PaaheAE HyHMEANSinास' SEARCHROCIRCLASS ** की BRAHMAdientium त्ति, एवमादीयत्ति आदिसहाओ कुट्ठवाहिउवहुया घेप्पंति । ते य भुंजंता आलोगें मुंजंति, सो पुण दुविहो जहा-" दुविहो खलु आलोगो दवे भावे य दवि दीवाई । सत्तविहो पुण भावे आलोगो तं पुण कहेह ।। १॥" ठाणगाहाए एयाए इमाओ १ आगमोद्धारकश्रीमद्-आनन्दसागरसूरीश्वरस्य हस्ताक्षराणि । । अवमादीयानि धादिपदाचोदे वाड्याशिवबा घुणपति व से या मांजतापुणालोगे संजति, सो गुण हाइो बहार विडो ॥६२॥ *** Jain Education For Private & Personel Use Only lwww.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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