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________________ भावकधर्मपञ्चाशकचूर्णिः । प्राणातिपातविरमणे गुणयतनाद्वारद्वयम् ॥५४॥ सुणेतो चेच नियत्तो, वितियदिवसे बलिं करेति, तस्स य चट्टस्म रक्खणवारओ, तेण भण्णइ-"दिया कागाण बीहेसि रत्ति तरसि नम्मयं । कुतित्थाणि य जाणासि अच्छीणं ढंकणाणि य ॥१॥" तीए भण्णति-किं करेमि? तुम्हारिसा मे णेच्छंति, सा तं उवचरति भणति य-' ममं इच्छसु 'त्ति, सो भणइ-कहं उवज्झायस्स पुरओ ठाइस्संति, तीए चिंतियं मारेमि एवं अज्झावगं, तो मे एस भत्ता भविस्सतित्ति, मारि पिडियाए छुहेऊण अडवीए उज्झिउमारद्धो, वाणमंतरीए थंभिया, अडवीए भमिउमारद्धा, छहं न सकेति अहियासेउ, तं च से कुणिमं गलति उवरिं, लोगेण हीलिजति-पतिमारिया हिंडतीति, तीसे पुणरावत्ती जाता, ताहे सा भणति-देह अम्मो ! पतिमारियाए भिक्खंति, एवं बहुकाले गए अन्नया साहुणीणं पाएसु पडंतीए पेडिया पडिया वत्तिणी जाया । जत्तादमगक्खाणयं-" भोगे अभुंजमाणावि केइ मोहा पडंति अहरगई। कुविओ | आहारथी जत्ताए जणस्स दमगोच ।। १ ॥ "त्ति उवएसमालागाहाए दट्ठवं । अण्णं च हिंसगो इहेव वहबंधपरिकिलेसाइणि दुक्खाणि लहइ, परलोगे य असुभगई जाइ गरहिओ य भवइ । तहा-" पाणवहे वटुंता भमंति भीमासु गम्भवसहीसु । संसारमंडलगया नरगतिरिक्खासु जोणीसु ॥१॥" एवमाई दोसा । संपयं गुणदारं-जीवे अवतस्स इमे गुणा-"दीहाउओ सरूवो नीरोगी होइ अभयदाणेण । जंमंतरेऽवि जीवो सयलजणसलाहणिजो य ॥१॥" एवमाइ । संपयं जयणा-" परिसुद्धजलगहणं दारुयधन्नाइयाण य तहेव । गहियाण य परिभोगो विहीए तसरक्खणडाए ॥१॥" परिसुद्धजलगहणं-वत्थगालियतसरहियसलिलगहणं, दारुधन्नाइयाणं च तहेव-परिसुद्धाणं-अनील अजिन्नाणं दारुगाणं अकीडविद्धधनस्स य गहणं कायवं, आइसदाउ असंसत्तफलाइया दहव्वा, गहियाणपि परिभोगो विहिणा परिमियपडिलेहियाइणा HOCACHECCASCCSCRECOREGAON ॥ ५४॥ Jain Educat onal For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600057
Book TitleAdya Panchashaka Curni
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1952
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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