________________
७४ ]
उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन
(ख) अरूपी अचेतन-द्रव्य (धर्म-अधर्म-आकाश-काल) : .
रूपादि से रहित अचेतन-द्रव्य मुख्यतः चार प्रकार का है और अवान्तर भेदों के साथ १० प्रकार का बतलाया गया है। इसके अवान्तर भेद काल्पनिक हैं । इसके प्रमुख चार भेदों के नाम ये हैंधर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य और कालद्रव्य । धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य और आकाशद्रव्य के बहुप्रदेशी होने के कारण इन्हें पुद्गल की तरह स्कन्ध, देश और प्रदेश के भेद से तीन-तीन प्रकार का बतंलाया गया है। इनके एक अखण्डरूप द्रव्य होने के कारण इनका परमाणुरूप चौथा भेद नहीं किया गया है। कालद्रव्य के परमाणुरूप ही होने के कारण उसका कोई अन्य अवान्तर भेद नहीं किया गया है क्योंकि बहप्रदेशी द्रव्य में ही स्कन्ध, देश और प्रदेश ये अवान्तर भेद बन सकते हैं । धर्मादि द्रव्यों के परमाणरूप न होने और बहुप्रदेशी (अस्तिकाय) होने से ग्रन्थ में धर्मादि द्रव्यों को संख्या की अपेक्षा एक-एक अखण्ड-द्रव्य बतलाया है। काल-द्रव्य के परमाणुरूप होने तथा एकप्रदेशी (अनस्तिकाय) होने से उसे अनेक संख्यावाला बतलाया है। इसीलिए तत्त्वार्थसूत्रकार ने भी कालद्रव्य को छोड़कर शेष धर्मादि तीन अचेतन द्रव्यों को बहुप्रदेशी (अस्तिकाय) तथा निष्क्रिय कहा है।
ये चारों ही द्रव्य अरूपी होने से भावात्मक तथा शक्तिरूप हैं। इन्हें हम अपनी आँखों से देख नहीं सकते हैं। इनके कार्यों से इनकी
१. धम्मो अधम्मो आगासं दव्वं इक्किक्कमाहियं । अणंताणि य दव्वाणि कालो पुग्गलजंतवो ।।।
- उ० २८. ८. २. अजीवकाया धर्माधर्माकाश पुद्गलाः ।
-त० सू० ५.१. आ आकाशादेक द्रव्याणि । निष्क्रियाणि च ।
-त० सू. ५. ६-७.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org