________________
.३०४ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन इससे जीव स्वावलम्बी हो जाता है और फिर अपने लाभ से ही संतुष्ट रहता है।'
ख. उपधि प्रत्याख्यान-वस्त्रादि उपकरणों का त्याग करना। इससे स्वाध्याय आदि के करने में निर्विघ्नता की प्राप्ति होती है तथा आकांक्षारहित होने से वस्त्रादि के मांगने, उनकी रक्षा करने आदि का कष्ट नहीं होता है । ___ ग. आहार प्रत्याख्यान-आहार का त्याग करने से जीवन के प्रति ममत्व नहीं रहता है और निर्ममत्व हो जाने पर आहार के बिना भी उसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है।
घ. योग प्रत्याख्यान -मन, वचन और कायसम्बन्धी प्रवृत्ति (योग) को रोकना योग प्रत्याख्यान है। इससे जीव जीवन्मुक्त (अयोगी) की अवस्था को प्राप्त करता है तथा नवीन कर्मों का बन्ध न करता हुआ पूर्वसंचित कर्मों का क्षय करता है ।
ङ. सदभाव प्रत्याख्यान-इसका अर्थ है-सभी प्रकार की प्रवृत्ति को त्यागकर पूर्ण वीतरागता की अवस्था को प्राप्त करना। इससे जीव सब प्रकार के कर्मों को नष्ट करके मुक्त हो जाता है। १. संभोगपच्चक्खाणेणं आलंबणाई खवेइ । 'सएणं लाभेणं संतुस्सइ परलाभं नो आसादेइ । .
-उ० २६.३३. २. निरुवहिए णं जीवे निक्कंखी उवहि मंतरेण य न संकिलिस्सई।
-उ० २६.३४. ३. आहारपच्चक्खाणेणं जीवियासंसप्पओगं वोच्छिंदइ।
-उ० २६.३५. ४. जोगपच्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ । अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न ___ बंधइ, पुव्वबद्धं निज्जरेइ ।
-उ० २६.३७. ५. सब्भावपच्चक्खाणेणं अणियट्टि जणयइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ ।
-उ० २६.४१. तथा देखिए-उ० २६.४२,४५ आदि ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org