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प्रकरण ६ : मुक्ति
[ ३७७ मोक्ष ऐसी गति है जिसे प्राप्त कर लेने पर पूनः संसार में आवागमन नहीं होता है। इससे श्रेष्ठ कोई गति नहीं है। अतः इसे 'अनुत्तरगति' कहा गया है। देव और मनुष्यगति को जो ग्रन्थ में कहींकहीं 'सुगति' कहा गया है वह संसारापेक्षा से है। वस्तुतः सुगति मोक्ष ही है और यह संसार की चार गतियों से भिन्न होने के कारण 'पंचमगति' है।
७. ऊर्ध्वदिशा'-मुक्तजीव स्वभाव से ऊर्ध्वगमन वाले हैं और वे जहाँ निवास करते हैं वह स्थान लोक के ऊपरी भाग में है। अतः ऊर्ध्व दिशा में गमन का अर्थ है-मोक्ष की प्राप्ति । तत्त्वार्थसूत्र में मुक्तात्माओं के ऊर्ध्वगमन स्वभाव के विषय में कुछ दष्टान्त दिए गए हैं ।२ यह ऊर्ध्वगमन लोक के अग्रभाग तक ही होता है क्योंकि अलोक में किसी भी तत्त्व की सत्ता नहीं मानी गई है।
८. दुरारोह-मुक्ति प्राप्त करना अत्यन्त कठिन होने से इसे 'दुरारोह' कहा गया है। ___६. अपुनरावृत्त और शाश्वत – यहाँ आने के बाद जीव पुनः कभी भी संसार में नहीं आता है । अतः मुक्ति 'अपुनरावृत्त' है तथा नित्य होने से 'शाश्वत' (ध्रुव) भी है।
१. उड्ढं पक्कमई दिसं।
___-उ० १६.८३. २. पूर्वप्रयोगादसंगत्वाद बन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच्च। आविद्धकूलाल- चक्रवद्व्यपगतलेपालाबुवदेरण्डबीजवदग्निशिखावच्च ।
-त० सू० १०.६-७. ३. अस्थि एगं धवं ठाणं लोगग्गम्मि दुरारुहं । जत्थ नत्थि ज(मच्चू वाहिणो वेयणा तहा ।।
-उ० २३.८१. निव्वाणंति अबाहंति सिद्धी लोगग्गमेव य । खेमं सिवं अणाबाहं जं चरति महेसिणो ॥
-उ० २३.८३. ४. वही; उ० २६.४४; २१.२४ आदि ।
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