Book Title: Uttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jaindharm Pracharak Samiti

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Page 480
________________ ४५४ ] उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन में दृढ़ता की परीक्षा के लिए सहेतुक प्रश्न पूछे । राजा ने भी उन सभी प्रश्नों के अध्यात्मप्रधान सयुक्तिक उत्तर दिए । इन्द्र -आज मिथिला में कुहराम क्यों है ? नमि -आज मिथिला में शीतल छाया, पत्र-पुष्प व फलादि से युक्त ( बहुत गुणों वाला) मनोरम चैत्यवृक्ष ( राजर्षि नमि) वायु (वैराग्य) के वेग से गिर पड़ा (गृह त्याग दिया ) है । अत: उसके ( वृक्ष - राजा ) आश्रित जीव ( पक्षी-प्राणी ) निःसहाय होकर स्वार्थवश विलाप कर रहे हैं । इसमें मेरा कोई दोष नहीं है । इन्द्र – तुम्हारे अन्तःपुर आदि अग्नि से जल रहे हैं । तुम उधर ध्यान क्यों नहीं देते हो ? नमि- सर्व विरत 'साधु को न तो कोई वस्तु प्रिय है और न अप्रिय । अतः मुझ आत्मानुप्रेक्षी को इससे क्या प्रयोजन है । इन्द्र - क्षत्रिय धर्मानुसार आप अपनी व प्रजा की रक्षा के लिए प्राकार, गोपुर अट्टालिका, खाई आदि बनवाकर दीक्षा लेवें । नमि - कर्मशत्रु से अपने आपको सुरक्षित रखने के लिए मैंने आध्यात्मिक तैयारी कर ली है । ' इन्द्र - महल आदि बनवाकर दीक्षा लेवें । नमि- संशयालु ही मार्ग में महल आदि बनवाता है । संसार में स्थायी निवास न होने से मैं स्थायी निवासंभूत मोक्ष में ही महल बनवाऊँगा । इन्द्र - चोरों से नगर की रक्षा करके दीक्षा लेवें । नमि- अक्सर चोर बच जाते हैं और चोरी न करने वाले पकड़े जाते हैं । अतः क्रोधादि सच्चे चोरों को दण्ड देना उचित है । इन्द्र - नमस्कार न करने वाले राजाओं को जीतकर दीक्षा लेवें । नमि-हजारों सुभटों को जीतने की अपेक्षा अवशीकृत एक आत्मा को जीतना सर्वोत्कृष्ट विजय है और वही सुख है । इन्द्र - यज्ञ कराके, दान देकर व भोग भोगकर दीक्षा लेवें नमि-दस लाख गौदान से संयम श्रेष्ठ है । अतः उसे ही धारण करना उचित है । १. देखिए - प्रकरण ७, पृ० ३६५-३६६. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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