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.परिशिष्ट २ : विशिष्ट व्यक्तियों का परिचय [४७७ दिया तथा अरिष्टनेमि के दीक्षा ले लेने के बाद इन्होंने उन्हें स्वयं नमस्कार भी किया। संभवतः कृष्ण का चरित्र जैन-ग्रन्थों में सर्वप्रथम यहीं मिलता है। ये अरिष्टनेमि के चचेरे भाई थे। केशिकुमार श्रमण :
ये पार्श्वनाथ के महायशस्वी शिष्य ( चौथे पट्टधर ) थे। ये शिष्यों के साथ ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए श्रावस्ती के 'तिन्दुक' नाम के उद्यान में ठहरे और वहाँ इन्होंने भगवान् महावीर के शिष्य गौतम से धर्म-भेदविषयक शिष्यों की शंका को दूर करने के लिए कुछ प्रश्न पूछे । इन्हें अवधिज्ञान था। कोशल राजा :२
ये कोशल देश के प्रसिद्ध राजा थे। इन्होंने यक्ष देवता की प्रेरणा से अपनी कन्या 'भद्रा' हरिकेशिबल मुनि को देना चाही थी परन्तु उन्होंने स्वीकार नहीं की थी। क्षत्रिय मुनि : ___ इन्होंने राज-पाट त्यागकर जिन-दीक्षा ली थी। संजय ऋषि से इनका वार्तालाप हुआ जिसमें इन्होंने जिन-दीक्षा लेकर मुक्ति प्राप्त करने वाले कई धार्मिक महापुरुषों के दष्टान्त दिए। आत्मारामजी ने इन्हें महावीर के सम-समयवर्ती लिखा है ।। गर्गाचार्य मुनि :५
इन्होंने अविनीत शिष्यों को समाधि में बाधक समझकर उनका त्याग किया और पृथिवी पर एकाकी विचरण किया। गर्दभाली मुनि :६ ___ ये उग्र तपस्वी थे। एक बार जब ये काम्पिल्य नगर के 'केशर' उद्यान में धर्मध्यान कर रहे थे तो उसी समय इनके समीप आए हुए मृगों को मारनेवाले राजा संजय ने इनसे क्षमा मांगी और जिनदीक्षा ली।
• १. उ० अध्ययन २३. .
३. उ० १६.२०, २४. ५. उ० २७.१, १६-१७.
२. उ० १२.२०, २२. ४. वही, टीका, पृ० ७४२. ६. उ० १८.६, १९, २२.
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