Book Title: Uttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jaindharm Pracharak Samiti

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Page 516
________________ ४६०] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन .. ( अनियन्त्रण )। असावधानी होने पर 'समिति' का पालन नहीं हो सकता और समिति का पालन न करने पर पाँच महाव्रतों की रक्षा नहीं हो सकती। अतः सब प्रकार के असंयम का त्याग आवश्यक है। इसके १७ प्रकार गिनाए गए हैं : १.६. पृथिवी, अप, तेज, वायु, वनस्पति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रियकाय के जीवों की रक्षा में असावधानी, १०. अचेतन वस्तुओं के ग्रहण करने में असावधानी, ११. ठीक से न देखता, १२. उपेक्षापूर्वक वस्त्रादि की प्रतिलेखना करना, १.३. अविधिपूर्वक मूत्रादि का त्याग करना, १४. पात्रादि का ठीक से प्रमार्जन न करना, १५-१७ मन, वचन और काय को वश में न रखकर हिंसादि में प्रवृत्त होना। BAHIFALT ' ( Causes of not concentrating ) - चित्त की एकाग्रता को समाधि (ध्यान ) कहा जाता है। अतः असमाधिस्थान का अर्थ है-जिससे चित्त में एकाग्रता की प्राप्ति न हो। इसके २० स्थान गिनाए गए हैं : १. जल्दी-जल्दी चलना २. रजोहरण से मार्ग को बिना प्रमाजित किए चलना, ३. दुष्प्रमार्जना करके चलना, ४. अधिक शयन करना, ५. गुरु आदि से विवाद करना, ६. गुरु आदि को मारने का विचार करना, ७. प्राणियों के घात के भाव करना, ८. प्रतिक्षण क्रोध करना, ६. ( सामान्य ) क्रोध करना, १०. पिशुनता करना, ११. पुनः पुनः निश्चयात्मक भाषा बोलना, १२. नवीन-नवीन क्रोधादि को उत्पन्न करना, १३. शान्त हुए क्रोधादि को पुन: जाग्रत करना, १४. सचित्त धूलि आदि से हाथ-पैर के भरे हुए होने पर भी अयत्नपूर्वक शय्या पर जाना, १५. निश्चित समय पर स्वाध्याय न करना, १६. व्यर्थ शब्द करना, १७. क्लेश करना, १८. संघभेद करना, १६. रात्रिभोजन करना और २०. एषणासमिति का पालन न करना। शबलदोष ( Forbidden actions )-सदाचार को मलिन करने में कारण होने से इन्हें शबल दोष कहा गया है। यद्यपि १. उ० ३१.१४; समवा०, समवाय २०. २. उ० ३१.१५. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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