Book Title: Uttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jaindharm Pracharak Samiti

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Page 524
________________ ४६८] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन समीप स्थित 'कांपिल' गांव से इसकी पहचान की जाती है। यह दक्षिण पाञ्चाल की राजधानी थी। महाभारत के अनुसार यहां के राजा द्रपद थे।' यह जैनियों का तीर्थक्षेत्र है क्योंकि यहां पर १३वें तीर्थङ्कर 'विमलनाथ' के चार कल्याणकर (अतिशय) हुए थे। काशी : यहां की भूमि में ही चित्त और संभूत नाम के दो चाण्डाल हुए थे। यहां के राजा काशीराज का भी उत्तराध्ययन में उल्लेख मिलता है। इस जनपद की राजधानी वाराणसी थी। जैन-बौद्ध दोनों के साहित्य में इसका समानरूप से उल्लेख मिलता है। इसमें वाराणसी, मिर्जापुर, गाजीपुर, जौनपुर और आजमगढ़ जिले का भूभाग आता था। इसके पूर्व में मगध, पश्चिम में वत्स, उत्तर में कोशल और दक्षिण में सोन नदी का भूभाग था। काशी और कोशल जनपद की सीमाओं में यदाकदा हेरफेर भी होता रहता था। कोशल : इसका प्राचीन नाम 'विनीता' था। विविध विद्याओं में कुशलता प्राप्त करने के कारण इसे 'कुशला' ( कोशल ) कहने लगे थे। उत्तराध्ययन में कोशलराज की पुत्री 'भद्रा' का उल्लेख आया है। बौद्ध साहित्य के अनुसार इस जनपद की राजधानी श्रावस्ती थी। इसमें लखनऊ, अयोध्या आदि नगर आते थे। जैन साहित्य के अनुसार कोशल ( कोशलपुर-अवध ) की राजधानी 'साकेत' ( अयोध्या ) थी। कनिंघम ने आयुपुराण और रत्नावली के आधार से इसकी स्थिति दक्षिण भारत में नागपुर के आसपास मानी है। १. वही। २. जैन तीर्थङ्करों के पांच कल्याणक माने जाते हैं। उनके क्रमशः नाम ये हैं : १. गर्भ, २. जन्म, ३. तप, ४. ज्ञान और ५. मोक्ष । ३. उ० १३.६; १८.४८. ४. उ० समी०, पृ० ३७६. ५. उ० १२.२०,२२. ६. जै० भा० स०, पृ०, ४६८-६९. ७. Ancient Geography of India, p. 438. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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