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परिशिष्ट २ : विशिष्ट व्यक्तियों का परिचय [ ४७५
उदायन : १
यह सौवीर ( सिन्धु ) देश का राजा था । इसने महावीर से दीक्षा धारण करके मुक्ति प्राप्त की ।
ऋषभ : २
ये जैनधर्म के प्रथम तीर्थङ्कर हैं । इनका गोत्र काश्यप था । इन्हें धर्मों का मुख कहा गया है । इन्द्रादि देव इनकी पूजा करते हैं । इनका धर्म भगवान् महावीर की तरह पंच महाव्रतरूप था । कपिल : 3
1
ये उत्तराध्ययन के आठवें अध्ययन के आख्याता कहे गए हैं । आप विशुद्ध प्राज्ञ थे । टीकाकारों ने लिखा है कि एक दासी के साथ प्रेम हो जाने पर ये उस दासी की अभिलाषा की पूर्ति के लिए राजदरबार में याचना के लिए गए। संयोगवश राजा ने इनसे प्रसन्न होकर यथेच्छ धन मांगने को कहा। इसी समय इन्हें लोभ की असीमता का ज्ञान हुआ और सब कुछ छोड़कर जैनसाधु बन गए । कमलावती : ४
यह इषुकार देश के राजा की धर्मपत्नी थी । इसके उपदेश से ही राजा को बोध की प्राप्ति हुई और फिर दोनों जिन दीक्षा लेकर व कर्मों का क्षय करके मोक्ष गए ।
करकण्डू : ५
कलिंग देश के राजा थे । ये प्रत्येक बुद्धों में गिने जाते हैं । इन्होंने पुत्र को राज्य-भार सौंपकर जिन दीक्षा ली और मोक्ष पाया ।
१. उ०१८. ४८.
३. उ० ८ २० व टीकाएँ ।
५. उ० १८. ४६-४७.
६. बोधि प्राप्त करने वाले मुनि
तीन प्रकार के होते हैं : १. स्वयं- बुद्ध ( जो स्वयं बोधि प्राप्त करते हैं ), २. प्रत्येक - बुद्ध ( जो किसी एक घटना के निमित्त से बोधि प्राप्त करते हैं ) और ३. बुद्ध-बोधित ( जो बोधिप्राप्त व्यक्तियों के उपदेश से बोधि प्राप्त करते हैं ) ।
- आचार्य तुलसी, उ० भाग १, पृ० १०५.
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२. उ० २५. ११, १४, १६. २३.८७. ४. उ० १४.३, ३७.
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