Book Title: Uttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jaindharm Pracharak Samiti

Previous | Next

Page 507
________________ परिशिष्ट २ : विशिष्ट व्यक्तियों का परिचय [ ४८ १ उत्पन्न हुआ । पूर्वजन्म में निदान बांधने के कारण यह छठे भाव में अपने भाई से पृथक् हो गया और चूलनी रानी की कुक्षि से उत्पन्न होकर आठवां चक्रवर्ती राजा हुआ। इसका चित्त मुनि से संवाद भी हुआ। धर्म का पालन न करने के कारण सातवें नरक में गया । भद्रा : १ यह कोशल राजा की सुन्दर अंगों एवं तदनुरूप गुणोंवाली पुत्री थी। इसने हरिकेशिबल मुनि पर प्रहार करनेवाले ब्राह्मणों को उनके तपोबल का परिचय देकर पीटने से रोका था। पहले यह अपने पिता के द्वारा देवता की प्रेरणा से इन्हीं मुनि को दे दी गई थी परन्तु वीतरागी होने से मुनि ने इसे स्वीकार नहीं किया था । टीकाकारों ने इसे राजा सोमदेव की पत्नी बतलाया है । भरत : २ ये भगवान् ऋषभदेव के प्रथम पुत्र और प्रथम चक्रवर्ती राजा थे । इनके नाम से ही इस देश का नाम 'भारत' पड़ा । इन्होंने राज्य त्यागकर जिन - दीक्षा ली थी । भृगु पुरोहित व पुत्रद्वय : 3 में ये तीनों पूर्व जन्म में देव थे । वहाँ से च्युत होकर इषुकार नगर ब्राह्मण के कुल में उत्पन्न हुए । भृगु पुरोहित के दोनों पुत्र जब जैन श्रमण बनने के लिए पिता से आज्ञा लेने आए तो पिता ने उन्हें भोगों से प्रलोभित करना चाहा परन्तु उन्होंने अपने प्रभाव से माता-पिता को भी भोगों से विरक्त करके सबके साथ दीक्षा ले । मूल ग्रन्थ में पुरोहित और उसके पुत्रों का नाम नहीं है । यहाँ पुरोहित का 'भृगु' नाम टीका ग्रन्थों के आधार से दिया गया है । भोगराज : ४ राजीमती के पिता ( उग्रसेन ) थे । केशव ने अरिष्टनेमि के साथ विवाह के लिए इनसे ही राजीमती की याचना की थी । मघवा : ५ ये तृतीय चक्रवर्ती थे । इन्होंने राज्य छोड़कर जिन - दीक्षा ली थी । १. उ० १२.२०, २२, २४-२५. ३. देखिए - इषुकार आख्यान, ५. उ० १८.३६. Jain Education International परि० १० २. उ० १८.३४. ४. उ० २२.८, ४४. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558