Book Title: Uttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jaindharm Pracharak Samiti

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Page 504
________________ ४७८ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन गौतम : ये महावीर के प्रथम गणधर ( प्रमुख शिष्य ) थे।२ इनका समय ई० पू० ६०७ के करीब है। एक बार ये अपने शिष्य-परिवार के साथ ग्रामानुग्राम विचरण करते हए श्रावस्ती के 'कोष्ठक' उद्यान में ठहरे। वहाँ केशिकुमार के साथ हुई धर्म-भेदविषयक तत्त्वचर्चा में इन्होंने समाधानात्मक उत्तर दिया और दोनों परम्पराओं में ऊपरीतौर पर दिखलाई पड़ने वाले मतभेद को दूर किया। पंश्चात् केशिकुमार ने अपने शिष्य-परिवार के साथ इनके बतलाए हुए मार्ग का अनुसरण किया। दसवें अध्ययन में गौतम को लक्ष्य करके अप्रमत्त होने का उपदेश दिया गया है। इन्हें 'भगवान्' जैसे शब्दों से भी सम्बोधित किया गया है । अन्त में इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। चित्तमुनि : __ ये पुरिमताल नगर के विशाल श्रेष्ठिकुल में उत्पन्न हुए थे। बाद में जैन श्रमण बन गए। ये अपने पिछले पाँच जन्मों में क्रमशः दशार्ण देश में दासरूप से, कलिंजर पर्वत पर मृगरूप से, मृतगंगा के तीर पर हंसरूप से, काशी में चाण्डालरूप से और देवलोक में देवरूप से अपने भाई संभूत ( ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ) के साथ-साथ उत्पन्न हुए परन्तु छठे जन्म में दोनों भाई पृथक्-पृथक् हो गए। एक बार छठे जन्म में जब ये दोनों काम्पिल्य नगर में मिले तो दोनों ने अपने-अपने सुख-दुःख का हाल एक दूसरे से कहा । ब्रह्मदत्त ने अपना वैभव चित्त मुनि को देना चाहा परन्तु चित्त मुनि ने उसे स्वीकार नहीं किया। इन्होंने ब्रह्मदत्त को धर्मोपदेश दिया परन्तु जब उस पर उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो फिर उसे उपदेश देना व्यर्थ समझकर वहाँ से चले गए। पश्चात् उग्र तप करके मोक्ष प्राप्त किया। १. उ० अध्ययन १० व २३. २. गौतम अपने शिष्य-परिवार के साथ महावीर के शिष्य कैसे बने ? देखिए-विशेषावश्यकभाष्य में गणधरवाद । ३. देखिए-चित्त-संभूत संवाद, परि० १. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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