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परिशिष्ट १ : कथा-संवाद
[४६७ विजयघोष ( प्रसन्न होकर )-आपने मुझे ब्राह्मणत्व का यथार्थ स्वरूप समझा दिया। आप वेदविद्, यज्ञविद्, ज्योतिषाङ्गविद्, धर्मविद् तथा स्व-परकल्याणकर्ता हैं । हे भिक्षुश्रेष्ठ ! आप मुझ पर अनुग्रह करके यज्ञान्न ग्रहण करें। ___ जयघोष-मुझे भिक्षा से कोई प्रयोजन नहीं है । तुम संसाररूपी सागर से पार उतरने के लिए मुनिधर्म को स्वीकार करो। ___ इसके बाद विजयघोष भी प्रवजित हो गया और दोनों ने संयम व तप की आराधना करके मोक्ष प्राप्त किया।
इस आख्यान से निम्नोक्त विषयों पर प्रकाश पड़ता है : १. सच्चे ब्राह्मण का स्वरूप । २. वेदादि का मुख । ३. जन्मना जाति की अपेक्षा कर्मणा जाति की श्रेष्ठता। ४. बाह्यशुद्धि की अपेक्षा आभ्यन्तर शुद्धि की श्रेष्ठता । ५. वैदिक द्रव्ययज्ञ की अपेक्षा यमयज्ञ की श्रेष्ठता।
६. अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में मुनिधर्म-समता। . ७. मुनि के उपदेश का प्रयोजन-पर-कल्याण ।
राजीमती-नेमि आख्यान :'
शौर्यपुर नगर में राजा वसुदेव और राजा समुद्रविजय राज्य करते थे। वसुदेव की दो पत्नियां थीं-रोहिणी और देवकी। इन दोनों पत्नियों से क्रमशः दो पुत्र हए-राम ( बलराम ) और केशव ( कृष्ण ) । राजा समुद्रविजय की पत्नी का नाम था 'शिवा' । उसके एक पुत्र का नाम था 'अरिष्टनेमि' और दूसरे का नाम था 'रथनेमि'। ___ उसी समय द्वारकापुरी में भोगराज ( उग्रसेन ) राज्य करते थे। उनकी पुत्री का नाम था 'राजीमती'। वह सभी श्रेष्ठ राजकन्याओं के लक्षणों से युक्त, चमकती हई बिजली की प्रभा की तरह दीप्तिमती, चारुप्रेक्षिणी और सुशील थी। समुद्र विजय के पुत्र
१. उ० अध्ययन २२.
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