Book Title: Uttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jaindharm Pracharak Samiti

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Page 498
________________ ४७२] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन नाम की कन्या के साथ कर दी। उसके साथ वह सुरम्य महलों में देवसदृश भोग भोगने लगा। एक दिन जब वह झरोखे में बैठा हुआ था तो उसकी दृष्टि अचानक एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी जो वधभमि की ओर ले जाया जा रहा था। उसे देख समुद्रपाल का हृदय वैराग्य से भर . गया। वह सोचने लगा-'अहो ! अशुभ कर्मों का फल बुरा होता है।' इसके बाद उसने माता-पिता से अनुमति लेकर श्रमणधर्म अङ्गीकार किया। श्रमणधर्म का सम्यक पालन करके उसने सभी प्रकार के कर्मों को नष्ट कर दिया और विशाल संसाररूपी समुद्र को पार करके मोक्ष चला गया। इस आख्यान से निम्नोक्त विषयों पर प्रकाश पड़ता है : १. श्रमणधर्म पालन करने का फल-मुक्ति । २. व्यापार व दण्ड-व्यवस्था । ३. कर्मों का फल । इस तरह सभी कथात्मक संवादों में मुख्य रूप से धार्मिक चर्चा की गई है। इनसे मिलते-जुलते कथानक व संवाद आदि महाभारत . व बौद्धग्रन्थों में भी मिलते हैं।' १. देखिए-प्रास्ताविक, पृ० ४५-४६; उ० समी० अध्ययन, खण्ड २, प्रकरण १. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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