Book Title: Uttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Sohanlal Jaindharm Pracharak Samiti

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Page 496
________________ ४७० ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन इस प्रभावोत्पादक आख्यान से निम्नोक्त विषयों पर प्रकाश पड़ता है : १. विभिन्न परिस्थितियों में नारी का कर्त्तव्य व शीलरक्षा । २. राजीमती, रथनेमि और अरिष्टनेमि का उदात्त-चरित्र । ३. रीति-रिवाज एवं राज्य-व्यवस्था आदि का चित्र । ४. पशु-हिंसा में निमित्तमात्र बनने का परिणाम । ५. कृष्ण आदि ऐतिहासिक महापुरुषों का प्रथमतः उल्लेख । संजय आख्यान : एक समय देवलोक से च्युत होकर राजा संजय ने कांपिल्य नगर में जन्म लिया। एक बार वह घोड़े पर बैठकर चतुरंगिणी सेना के साथ 'केशर' उद्यान में शिकार के लिए गया। वहां उसने संत्रस्त मृगों को मारा। उसी उद्यान के अप्फोव-मण्डप ( लतामण्डप ) में तपस्वी गर्दभाली मुनि ध्यानमग्न थे। इधर-उधर घूमने के बाद राजा संजय ने उसी लतामण्डप के पास पहले तो मरे हुए मृगों को और बाद में ध्यानस्थ मुनि को देखा। मुनि को देखकर राजा डर गया। उसने सोचा कि रसलोलूपी मैंने यहां के मृगों को मारकर मुनि का अपराध किया है। अतः मुनि के कोप से भयभीत राजा शीघ्र ही घोड़े पर से उतरा और विनयपूर्वक बोला-'हे भगवन् ! मुझे इस विषय में क्षमा करें।' मुनि उस समय ध्यानमग्न थे। अतः उन्होंने कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया। इससे राजा और भी अधिक भयभीत हो गया। पश्चात् राजा ने अपना परिचय देते हुए पुनः विनती की। ध्यानस्थ मुनि ने मौन भंग करते हुए कहा-'हे राजन् ! तुझे अभय है। तू भी दूसरों को अभय करने वाला बन । तू हिंसावृत्ति क्यों करता है ? यह संसार असार एवं अनित्य है। एक दिन तुझे भी सब कुछ यहीं छोड़कर परलोक जाना होगा। इस तरह विविध प्रकार से मुनि के द्वारा समझाया गया राजा संजय राज्य छोड़कर उनके समीप ही जिनशासन में दीक्षित हो १. उ० अध्ययन १८. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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