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प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति [४१७ की उपमा जुए में हारे हुए जुआड़ी से दी गई है। इससे द्यूतक्रीड़ा व द्यूतक्रीड़ा में हारे हुए व्यक्ति की स्थिति का ज्ञान होता है।
ग. उद्यान में विहार-यात्रा-प्रायः नगरों के समीप में उद्यान हुआ करते थे जो नाना प्रकार के फूलों,२ फलों, वृक्षों, और लतामण्डपों५ आदि से सुशोभित रहते थे।६ इनमें राजा लोग नाना प्रकार की क्रीड़ाएँ किया करते थे जिन्हें 'विहार-यात्रा' कहते थे। इन उद्यानों में आकर साधु अपनी साधना भी किया करते थे। ग्रन्थ में ऐसे कई उद्यानों का उल्लेख मिलता १. धुत्तेव कालिणा जिए ।।
-उ० ५.१६. २. ग्रन्थ में उल्लिखित कुछ फूलों के नाम-अतसी ( १६.५६ ; ३४.६ ),
असन, सण ( ३४.८ ), मुचकुन्द या कुन्द ( ३४.६; ३६.६१ ), शिरीष ( ३४.१६ ) आदि। ३. ग्रन्थ में उल्लिखित कुछ फलों के नाम-आम, कपित्थ (७.११;
३४.१२-१३), बिल्व ( १२.१८ ), किंपाक ( ३२.२०; १६.१८ ),
तालपुट ( २३.४५; ६.५३; १६.१३ ) आदि । ___४. ग्रन्थ में उल्लिखित कुछ वृक्षों के नाम-चैत्य (६.६-१०), तिन्दुक
(१२.८ ), जम्बू-सुदर्शन ( ११.२७ ), शाल्मलि ( १६.५३;
२०.३६ ), अशोक ( ३४.५ ), किंपाक ( ३२.२० ) आदि । ५. अप्फोवमंडवम्मि
-उ० १६.५. ६. नाणादुमलयाइन्नं नाणापविखनिसेवियं ।
नाणाकुसुमसंछन्नं उज्जाणं नंदणीवमं ॥ तत्थ सो पासई साहुं संजयं सुसमाहियं । तिसन्नं रक्खमूलम्मि...............।
-उ० २०.३-४. तथा देखिए-उ० २५.३; १८.६; २३.४, ८; १६.१. ७. विहारजत्तं निज्जाओ मंडिकुच्छिसि चेइए ।
-उ० २०.२. . ८. देखिए-पृ० ४१७, पा० टि० ६.
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