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४२४ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन - सैन्यदल के साथ शिकार खेलने भी जाते थे। ये सुकुमार, सुसज्जित
और सूखोचित होते थे ।२ भोग-विलासता के कारण कभी-कभी. कोई कोई राजा अपना राज्य भी हार जाता था। प्रधान राजा के आधीन अन्य कई राजागण होते थे जो एक-एक देश के स्वामी होते थे। राजा की दीक्षा के अवसर का दृश्य भी दर्शनीय होता था।५ राजाओं का इतना ऐश्वर्य एवं प्रभत्व होने पर भी राजाज्ञा को सभी लोग प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार नहीं करते थे अपितु दबाव एवं भय के कारण मानते थे। अतः ग्रन्थ में अविनीत शिष्य के द्वारा गुरु की आज्ञा पालन करने के विषय में राजाज्ञा का दृष्टान्त दिया गया है।
राजाओं के प्रमुख कार्य-राजा को अपने राज्य का विस्तार करने तथा शत्र के आक्रमण से राज्य की सुरक्षा करने के लिए युद्ध करना पड़ता था। अतः युद्ध में कुशल होना राजा को आवश्यक होता था। राजा का प्रधान बल सेना थी और वह युद्धस्थल में सेना से ही शोभित होता था। सेना चार भागों (हाथी, घोड़ा, रथ और पैदल ) में विभक्त रहती थी जिसे चतुरंगिणी सेना १. देखिए-पृ० ४१६, पा० टि० ४. २. सुहोइओ तुमं पुत्ता सुकुमालो सुमज्जिओ। . .
-उ० १६.३५.. ३. अपत्थं अंबगं मोच्चा राया रज्जं तु हारए ।
-उ० ७.११. ४. जे केइ पत्थिवा तुझं नानमंति नराहिवा। वसे ते ठावइत्ताणं तओ गच्छसि खत्तिया ॥
-उ० ६.३२. अनिओ रायसहस्सेहिं सुपरिच्चाई...।
-उ०१५.४३. ५. कालोहलगभूयं आसी मिहिलाए पव्वयंतम्मि ।
-उ० ६.५. ६. रायवेट्टि च मन्नता करेंति भिउडि मुहे ।
-उ० २७.१३. ७. देखिए-पृ० ४०२, पा० टि० १.
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