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उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन
नगरी में आए । वहां केशि 'तिन्दुक' उद्यान में और गौतम 'कोष्ठक' उद्यान में अपने-अपने शिष्य-परिवार के साथ ठहर गए। दोनों ज्ञान व सदाचार से सम्पन्न थे। उनके शिष्यों ने जब एक दूसरे के बाह्यवेश व महाव्रतों के विषय में अन्तर देखा तो शंकायुक्त हो गए। उन्होंने सोचा-जब दोनों एक ही धर्म को मानने वाले हैं तो फिर यह बाह्यवेशभूषा और आचार विषयक मतभेद कैसा ? शिष्यों की इस शंका को जानकर दोनों ने आपस में मिलने की इच्छा प्रकट की। केशि को ज्येष्ठकूल का जानते हए गौतम अपने शिष्य-परिवार के साथ तिन्दुक उद्यान में गए । गौतम को आते देखकर केशि ने उनका उचित सत्कार किया। आसन पर बैठे हुए वे दोनों सूर्य और चन्द्रमा की तरह सुशोभित हुए। उनके समागम को देखकर बहुत से गृहस्थ, देव, दानव, यक्ष, राक्षस और पाखण्डी आदि हजारों की संख्या में वहां एकत्रित हो गए। इसके बाद केशि ने शिष्यों की शंकाएँ दर करने के लिए गौतम से अनुमति लेकर कुछ प्रश्न पूछे और गौतम ने उनका देश-कालानुरूप सयुक्तिक उत्तर दिया।
केशि-जब दोनों तीर्थङ्करों का उद्देश्य एक ही है तो फिर पार्श्वनाथ के चतुर्यामरूप धर्म को महावीर ने पंचयाम (पाँच महाव्रत) में क्यों परिवर्तित किया ?
गौतम-ज्ञान से धर्म-तत्त्व का निश्चय करके तथा देश-काल के अनुसार बदलती हुई जनसामान्य की प्रवृत्तियों को ध्यान में रखकर धर्म में यह आचारविषयक परिवर्तन किया गया। यदि ऐसा न किया जाता तो धर्म स्थिर नहीं रह सकता था।
केशि-पार्श्वनाथ के सान्तरोत्तर ( सचेल ) धर्म को महावीर ने अचेलधर्म में क्यों परिवर्तित किया ?
गौतम-बाह्यवेश-भूषा तो लोक में मात्र प्रतीति कराने में कारण है। दोनों के मत में मोक्ष के सद्भूत सच्चे साधन तो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र हैं। इस वस्त्र-विषयक परिवर्तन का भी कारण पूर्ववत् था। १. देखिए-प्रकरण ७, पृ० ४२८-४२६.
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