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परिशिष्ट १
कथा-संवाद अत्यन्त प्राचीन काल से ही किसी भी विषय को रोचक, प्रेरणादायक एवं प्रभावोत्पादक बनाने के लिए उपमा एवं दृष्टान्त के अतिरिक्त कथा एवं संवादों का प्रयोग किया जाता रहा है। उपदेशात्मक तथा धार्मिक ग्रन्थों में इस प्रकार का प्रयोग नितान्त आवश्यक भी है । प्राचीन जैन आगमों में इस दृष्टि से ज्ञातृधर्मकथा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके बाद दूसरा स्थान उत्तराध्ययन का है।'
कथाओं का विभाजन सामान्यरूप से चार भागों में किया जाता है । जैसेः १. अर्थकथा, २. कामकथा, ३. धर्मकथा और ४. संकीर्णकथा । उत्तराध्ययन की कथाएँ धर्मकथा विभाग में आती हैं क्योंकि उत्तराध्ययन एक धार्मिक काव्य-ग्रन्थ है और इसमें उपमा, दृष्टान्त, संवाद, कथा आदि के द्वारा धर्म व वैराग्य का ही विशेषरूप से उपदेश दिया गया है। इसकी कथाएँ, उपदेश व संवाद जातक, महाभारत आदि की कथाओं आदि से बहुत-कुछ मिलते-जुलते हैं। उत्तराध्ययन की कथाएँ मूलरूप में संक्षिप्त एवं संकेतात्मक हैं जिनका टीका-ग्रन्थों में पर्याप्त पल्लवन हुआ है। यहाँ पर मूलग्रन्थानुसार हृदयस्पर्शी व रोचक संवाद एवं कथाएं दी जा रही हैं। केशि-गौतम संवाद : - तेईसवें तीर्थङ्कर भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्य केशिकुमार श्रमण और चौबीसवें तीर्थङ्कर भगवान् महावीर के शिष्य गौतम ये दोनों ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए संयोगवश एक समय श्रावस्ती १. प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ० ३५७. २. वही, पृ० ३६०-३६१. ३. उ० अध्ययन २३.
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