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४०४] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन . स्थिति के लिए न तो अन्न-पानादि का सेवन करती है और न स्नान, विलेपन, मालाधारण आदि के द्वारा शरीर का शृङ्गार ही करती है अपितु क्षणभर के लिए भी पति से दूर न होती हुई निरन्तर रोती रहती है। कभी-कभी ऐसी पतिव्रता पत्नियाँ सदुपदेश के द्वारा अपने पति को तथा अन्य जनों को भी सन्मार्ग में प्रवृत्त कराती थीं । ऐसी पतिव्रता पत्नी के लिए पति ही सर्वस्व होता था। पति के अभाव में उसका जीवन दूभर ( बड़ा कष्टमय ) हो जाता था। राजीमती का उदात्त चरित्र इसका एक ज्वलन्त दृष्टान्त है। विवाह की मंगलवेला में राजीमती जब यह सुनती है कि उसके होनेवाले पति अरिष्टनेमी दीक्षा ले रहे हैं तो उसके मुख की हंसी व कान्ति तिरोभत हो जाती है ।२ राजकन्या राजीमती में स्च्युचित सभी अच्छे गुण वर्तमान थे। यदि वह चाहती तो किसी भी मनपसन्द अच्छे राजकुमार से शादी कर सकती थी परन्तु एक बार अरिष्टनेमी को पिता की प्रेरणा से मन में पतिरूप से चन लेने पर दूसरे राजकुमार से शादी नहीं करती है और बाल-ब्रह्मचारिणी होकर पति के मार्ग का अनुसरण करती हुई सुगन्धित बालों को उखाड़कर दीक्षा ले लेती है। स्वयं दीक्षा लेने के बाद वह अन्य स्त्री-समाज को भी श्रमणधर्म में दीक्षित करती है। एक बार जब राजीमती रैवतक पर्वत पर जा रही थी तो वर्षा से वस्त्र के भीग जाने पर वह समीपस्थ अन्धकारपूर्ण गुफा में वस्त्रों को उतारकर सुखाने लगती है। इसी समय १. भारिया मे महाराय ! अणुरत्ता अणुव्वया ।
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अन्नं पाणं च ण्हाणं च गंधमाल्लविलेवणं । मए नायमनायं वा सा बाला नेव भुंजई ।
-उ० २०.२८-२९. तथा देखिए-उ० २८.३०. २. सोऊण रायकन्ना पव्वज्ज सा जिणस्स उ।
णीहासा उ निराणंदा सोगेण उ समुच्छिया ॥ राईमई विचितेई धिगत्यु मम जीवियं । जाऽहं तेणं परिच्चत्ता सेयं पव्वइउं मम ॥
-३० २२.२९-३०.
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