________________
४१० ]
उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन
इन्धनका योगरूपी वा से हवन किया जाता है। संयम - व्यापाररूपी शान्तिपाठ को पढ़ा जाता है । ब्रह्मचर्यरूपी शान्ति-तीर्थ में स्नान किया जाता है । संयम का पालन करना ही गौदान है । इस तरह इस यज्ञ को सम्पन्न करने के बाद अध्यात्म जलाशय में स्नान करने से कर्ममल धुल जाते हैं और आत्मा निर्मल होकर मोक्ष को प्राप्त कर लेती है । ऐसा ही यज्ञ ऋषियों के द्वारा प्रशस्त एवं उपादेय है।
विवाह प्रथा :
स्त्री और पुरुष के मधुर मिलन को एक सूत्र में बाँधनेवाली सामाजिक प्रथा विवाह है। उत्तराध्ययन में विवाह सम्बन्धी जो जानकारी उपलब्ध होती है उससे निम्न निष्कर्ष निकलते हैं
१. साधारणतया वर एवं कन्या दोनों पक्षों के माता-पिता या उनके अग्रज सम्बन्धीजन पहले विवाह सम्बन्ध तय किया करते 12 विवाह सम्बंध तय हो जाने के बाद विधिपूर्वक विवाह की क्रिया की जाती थी । भगवान् अरिष्टनेमी के युवा - ( विवाह-योग्य ) होने पर जब उनके अग्रज केशव (श्री कृष्ण ) विवाह सम्बन्ध के लिए उग्रसेन की पुत्री राजीमती की याचना करते हैं तो उग्रसेन कहते हैं कि कुमार यहाँ आएं और वधू को ग्रहण करें। इसके बाद वर और वधू को सब प्रकार से अलंकृत किया जाता है । वर अपने राजसी वैभव के साथ श्रेष्ठ गन्धहस्ती पर सवार होकर चतुरङ्गिणी सेना एवं गाजे-बाजे के साथ सपरिवार नगर से प्रस्थान करता है ।
२. कभी-कभी ऐसा भी होता था कि विदेश से व्यापार आदि के लिए आए हुए वर के गुणों से आकृष्ट होकर लड़की का पिता उसे अपनी कन्या विवाह देता था । इसके बाद वर जब तक चाहता
९. वही ।
२. देखिए - पृ० ३६७, पा० टि० ७; पृ० ४०५, पा० टि० ७.
३. इहागच्छतु कुमारी जा से कन्नं ददामि हं ।
- उ० २२.८.
तथा देखिए – पृ० ४११, पा० टि० ३.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org