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प्रकरण ६
मुक्ति
सब प्रकार के कर्मबन्धन से छुटकारा पाना मुक्ति है। अन्य भारतीय धार्मिक ग्रन्थों की तरह उत्तराध्ययन का भी चरम लक्ष्य जीवों को मुक्ति की ओर अग्रसर करना है। पहले बतलाए गए नौ प्रकार के तथ्यों में यह अन्तिम तथ्य है । मुक्ति के अर्थ में प्रयुक्त कुछ शब्द :
प्रकृत ग्रन्थ में मुक्ति के अर्थ को अभिव्यक्त करनेवाले कुछ शब्दों का प्रयोग मिलता है जिनसे उसके स्वरूप के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
१. मोक्ष' - 'मुच' धातु से मोक्ष बनता है। मोक्ष शब्द का अर्थ है-किसी से छुटकारा प्राप्त करना। अध्यात्मविषय होने से यहाँ पर संसार के बन्धनभत कर्मों से छुटकारा अभिप्रेत है। जीव का कर्मों के बन्धन से छुटकारा होता है तथा कर्मबन्धन से रहित स्व-स्वरूप में प्रतिष्ठित जीव को 'मुक्त जीव' कहा गया है। अतः मोक्ष का अर्थ हुआ-'सब प्रकार के बन्धन से रहित जीव द्वारा स्वस्वरूप की प्राप्ति ।' ... २ निर्वाण २ - इसका अर्थ है-समाप्ति। यहां पर समाप्ति से तात्पर्य चेतन के अभाव से नहीं है क्योंकि मोक्ष की प्राप्ति होने पर चेतन का विनाश नहीं होता है अपितु उसे स्व-स्वरूप की प्राप्ति होती है। अत: यहां पर निर्वाण का अर्थ है-'कर्मजन्य सांसारिक १. बंधमोक्खपइण्णिणो।
-उ० ६.१०. २. नायए परिनिव्वुए।
-उ० ३६.२६६. नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ।
-उ० २८.३०.
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