________________
३७४ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन . . दस लाख गौदान से भी कहीं अधिक श्रेष्ठ होता है।' इस तरह यह साध्वाचार का मार्ग विशुद्ध एवं कण्टकादि से रहित राजमार्ग है। तथा दुष्कर हो करके भी सुखावह है। यही साधु का सदाचार है और यही तप।
१. जो सहस्स सहस्साणं मासे मासे गवं दए। तस्सावि संजमो सेओ अदितस्स वि किंचण ॥
-उ० ६.४०. २. अवसोहिय कंटगापहं ओइण्णोऽसि पहं महालयं ।।
-उ० १०.३२. ३. भिक्खवत्ती सुहावहा।
-उ० ३५.१५. तथा देखिए-उ० ६.१६.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org