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३७६ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन अवस्थाओं का सदैव के लिये समाप्त हो जाना'। बौद्ध दर्शन में यह । मुक्ति-वाचक प्रचलित शब्द है । परन्तु वहां अर्थ भिन्न है।
३. बहिःविहार'-यहाँ पर विहार शब्द का अर्थ है-जन्मजरा-मरण से व्याप्त संसार । अतः बहिःविहार का अर्थ हुआसंसार के आवागमन से रहित स्थान या जन्म-मरणरूप संसार से बाहर । मोक्ष की प्राप्ति हो जाने के बाद जीव का संसार में आवागमन नहीं होता है। अतः उसे बहिःविहार कहना उपयुक्त ही है।
४. सिद्धलोक २- मोक्ष को प्राप्त होनेवाला जीव सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त होकर अपने अभीष्ट को प्राप्त ( सिद्ध ) कर लेता है। अतः मुक्त होनेवाले जीवों को 'सिद्ध' तथा जहाँ उनका निवास है उसे 'सिद्धलोक' ( सिद्धशिला ) कहा गया है।
५. आत्मवसति'- मुक्त होने का अर्थ है- अत्मस्वरूप की प्राप्ति । अतः आत्मवसति या आत्मप्रयोजन की प्राप्ति का अर्थ है-मोक्ष की प्राप्ति ।
६. अनुत्तरगति, प्रधानगति', वरगति व सुगति - सामान्यरूप से चार गतियाँ मानी गई हैं जो संसारभ्रमण में कारण हैं परन्तु १. बहिं विहाराभिनिविट्ठचित्ता।
-उ०१४.४. संसारपारनित्थिण्णा।
___-उ० ३६.६७. २. देखिए-पृ० ५७, पा० टि० १; उ० २३.८३; १०.३५. ३. अप्पणो वसहिं वए।
-उ० १४.४८. . तथा देखिए-उ० ७.२५. ४. पत्तो गई मणुत्तरं ।
-उ० १८.३८. ___तथा देखिए-उ० १८.३९-४०,४२-४३,४८ आदि । ५. गइप्पहाणं च तिलोयअविस्सुतं ।
-उ० १६.६८. ६. सिद्धि वरगई गया।
-उ० ३६.६७. ७. जीवा गच्छंति सोग्गई।
-उ० २८.३.
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