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प्रकरण ७ : समाज और संस्कृति [ ३६५ विशाल जनसमुदाय निराश्रित होकर रोता है तथा इन्द्र ब्राह्मण का रूप धारण करके उनकी परीक्षा लेता है।' इससे भी ब्राह्मण व क्षत्रिय जाति की श्रेष्ठता का पता चलता है। यद्यपि यज्ञादि धार्मिक कार्यों का सम्पादन श्रेष्ठ ब्राह्मणों के द्वारा ही होता था परन्तु कुछ ब्राह्मण अपने कर्त्तव्य को भलकर तथा जाति का घमण्ड करके हिंसादि में प्रवत्ति करते थे। ऐसे ब्राह्मणों को ही अनार्य ब्राह्मण कहा गया है। ये अपने को उच्च तथा अन्य को निम्न समझते थे। इसके अतिरिक्त ये यज्ञों में पशूहिंसा का प्रतिपादन करते थे तथा जैन श्रमणों का यज्ञ-मण्डप में आने पर तिरस्कार करते थे।२ ऐसे अनार्य ब्राह्मणों को ग्रन्थ में वेदपाठी होने पर भी सम्यक अर्थ से हीन होने के कारण वेदवाणी का भारवाहक कहा गया है।
क्षत्रिय - देश पर शासन करनेवाले क्षत्रिय ही होते थे। ग्रन्थ में ऐसे कितने ही क्षत्रिय राजा और राजकुमारों का उल्लेख मिलता है जिन्होंने संसार के वैभव को त्यागकर तथा श्रमणदीक्षा लेकर मुक्ति को प्राप्त किया। इन्द्र-नमि संवाद में जैन साधु की कर्म-शत्रओं पर विजय का वर्णन करते हुए रूपक द्वारा क्षत्रिय की युद्ध -विजय का भी प्रतिपादन किया गया है। इससे क्षत्रियों के प्रभुत्व का तथा उनकी युद्धकला का पता चलता है। यहां बतलाया गया है कि एक क्षत्रिय राजा साधु बनकर किस प्रकार कर्मशत्रओं १. सक्को माहणरूवेणं इमं वयणमब्बवी ।
-उ० ६.६. तथा देखिए-इन्द्र-नमिसंवाद. २. के इत्थ खत्ता उवजोइया वा अज्झावया वा सह खंडिएहिं । एयं खु दंडेण फलएण हंता कंठम्मि घेत्तृण खलेज्ज जो णं ।।
-उ० १२.१८. तथा देखिए-पृ० ३६२, पा० टि० २-३; उ० १२.१६. ३. तुभेत्थ भो भारधरा गिराणं अट्ठ न जाणेह अहिज्ज वेए ।
-उ० १२.१५. ४. देखिए-परिशिष्ट २.
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