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३०८ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन ।
वट्टकेरकृत दिगम्बर ग्रन्थ मूलाचार में तथा श्वेताम्बर ग्रन्थ भगवतीसूत्र में भी इन्हीं दस अवयवोंवाली सामाचारी का वर्णन मिलता है ।' प्रकृत ग्रन्थ में सामान्य रूप से सामाचारी के १० अवयवों के वर्णन के साथ साधु के दिन एवं रात्रि के सामान्य कार्यों का भी समयविभाग के अनुसार वर्णन मिलता है । दिनचर्या एवं रात्रिचर्या :
साध को सर्वप्रथम दिन एवं रात्रि को समानरूप से चार-चार' भागों में बाँट लेना चाहिए। इसके बाद प्रत्येक भाग में अपनेअपने कर्तव्यों ( उत्तरगुणों ) का पालन करना चाहिये ।२ ग्रन्थ में प्रत्येक भाग को पौरुषी ( प्रहर ) शब्द से कहा गया है। प्रत्येक प्रहर में किए जाने वाले साधु के सामान्य कर्त्तव्य इस प्रकार हैं :४
दिन का प्रथम प्रहर-यह सामान्यतः स्वाध्याय ( अध्ययन ) का समय है। इस प्रहर के आदि के चतुर्थ भाग में वस्त्र, पात्र
१. इच्छामिच्छाकारो तथाकारोयआसिआणिसिही। , आपुच्छापडिपुच्छाछंदणसणिमंतणाय उ वसंपा ।।
- मूलाचार, अधिकार ४.१२५, दसविहा सामायारी पन्नता तं जहा"'"। .
-भगवती, २५.७.१०१. २. दिवसस्स चउरो भागे भिक्खू कुज्जा वियक्खणो । तओ उत्तरगुणे कुज्जा दिणभागेसु च उसु वि ।।
-उ०२६.११. तथा देखिए-उ० २६.१७. ३. उ० २६.१३-१६,१६-२०. ४. पढम पोरिसि सज्झायं बीयं झाणं झियायई । तइयाए भिक्खायरियं पुणो च उत्थीइ सज्झायं ॥
-उ० २६.१२. पढमं पोरिसि सज्झायं बीयं झाणं झियायई। तइयाए निद्दमोक्खं तु चउ त्यी भुज्जो वि सज्झायं ॥
-3० २६.१८. तथा देखिए-उ० २६.३६-५२.
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