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प्रकरण ५ : विशेष साध्वाचार
[ ३३७ प्रसङ्ग में ग्रन्थ में आठ प्रकार की गोचरी,१ सात प्रकार की एषणा२ तथा अन्य नियमविशेषों ( अभिग्रह ) के पालन १. आठ प्रकार की गोचरी-क्षेत्र ऊनोदरी के प्रसङ्ग में कहे गए पेटा,
अर्धपेटा आदि ६ प्रकार ही यहां पर आठ प्रकार की गोचरी के रूप में वणित हैं। जैसे : पेटा, अर्घपेटा, गोमूत्रिका और पतंगवीथिका ये चार प्रकार ज्यों के त्यों हैं। इसके अतिरिक्त 'शम्बूकावर्त' के बाह्य और आभ्यन्तर ये दो भेद हैं तथा 'आयतं गत्वा प्रत्यागता' के भी ऋजुगति (सीधे जाकर सीधे लौटना) और वक्रगति (वक्रगति से जाकर वक्राकार लौटना) के भेद से दो भेद हैं । इस तरह भिक्षा के लिए जाते समय क्षेत्रसम्बन्धी नियमविशेष लेना ही आठ प्रकार
की गोचरी है। २. सात प्रकार की एषणाएँ ( अन्नादि ग्रहण करने के नियम )
१. संसृष्टा (भोजन की सामग्री से भरे हुए पात्र के होने पर भिक्षा लेना), २. असंसृष्टा (भोजन की सामग्री से भरे हुए पात्र के न होने पर भिक्षा लेना), ३. उद्धृता ( जो भोजन रसोईघर से बाहरं लाकर गृहस्थ ने थाली आदि में अपने निमित्त रखा हो, उसे लेना), ४. अल्पलेपिका (निर्लेप भुंजे हुए चना आदि लेना), ५. उदग्रहीता (भोजन के समय भोजन करनेवाले व्यक्ति को परोसने के लिए जो भोजन चम्मच आदि से निकालकर बाहर रख दिया हो, उसे लेना), ६. प्रगृहीता ( भोजनार्थी को देने के लिए उद्यत दाता के हाथ में स्थित सामग्री को लेना) और ७. उज्झितधर्मा
(निस्सार रूखा आहार लेना)। ३. अन्य अभिग्रह ( नियमविशेष )-अपनी इच्छानुसार कोई नियम
ले लेना कि अमुक-अमुक स्थिति के होने पर ही आहार लूंगा। जैसे : १. द्रव्याभिग्रह ( किसी विशेष पात्र में रखे हुए किसी विशेष प्रकार के आहार के लेने की प्रतिज्ञा), २. क्षेत्राभिग्रह (यदि दाता देहली को अपनी जंघाओं के बीच में करके आहार देगा तो लूंगा, ऐसी क्षेत्र-सम्बन्धी प्रतिज्ञा), ३. कालाभिग्रह ( जब सब साधु भिक्षा ले आएँगे तब भिक्षार्थ जाने पर जो मिलेगा उसे लूंगा, ऐसी प्रतिज्ञा) और ४. भावाभिग्रह ( यदि कोई हंसते हुए या रोते हुए देगा तो लूंगा, ऐसी प्रतिज्ञा)। इसी तरह अन्य विविध नियमों को लिया जा सकता है ।
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