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१०२ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन शुक्ति, शंख, लघुशङ्ख (घोंघे आदि), पल्लक, अनुपल्लक, बराटक (कौड़ी), जलौका (जोंक आदि), जालका, चन्दना आदि ।
२. त्रीन्द्रिय जीव - जो स्पर्शन, रसना और घाण इन तीन इन्द्रियों से युक्त हैं वे त्रीन्द्रिय जीव कहलाते हैं। जैसे:१ कुन्थु, पिपीलिका, उदंसा, उत्कलिका, उपदेहिका, तृणहारक, काष्ठहारक, मालुका, पत्रहारक, कार्पासिक, अस्थिजात. तिन्दुक, त्रपुष, मिंगज (मिञ्जक), शतावरी, गुल्मी, इन्द्रकायिक, इन्द्रगोपक आदि ।
३. चतुरिन्द्रिय जीव- जो स्पर्शन, रसना, घाण और चक्षु इन चार इन्द्रियों से युक्त हैं वे चतुरिन्द्रिय जीव कहलाते हैं। जैसे:२ अन्धिका, पौक्तिका, मक्षिका, मशक, भ्रमर, कीट, पतंग, ढिंकण, कुंकण, कुक्कुट, शृङ्गरीटी, नन्द्यावर्त, वृश्चिक, डोला, भृङ्गरीटक, विरली, अक्षिबेधक, अक्षिला, मागध, अक्षिरोडक, विचित्र, चित्रपत्रक, उपधिजलका, जलकारी, नीचक, तामृक आदि । ___ उपर्युक्त तीनों प्रकार के द्वीन्द्रियादि जीव स्थूल होने से लोक के एक देश में रहते हैं। ये अनादिकाल से वर्तमान हैं और अनन्तकाल तक रहेंगे। ये किसी जीव विशेष की स्थिति विशेष की अपेक्षा से सादि और सान्त भी हैं। इनकी स्थिति (आयु) कम से कम अन्तर्महुर्त तथा अधिक से अधिक द्वीन्द्रिय की १२ वर्ष, त्रीन्द्रिय की ४६ दिन, चतुरिन्द्रिय की ६ मास है।५ कायस्थिति १. कुंथुपिवीलिउड्डंसाणेगविहा एवमायओ।
-उ० ३६.१३७-१३६. २. अंधिया पोत्तिया चेव मच्छिया मसगा तहा।
इय चउरिदिया एए णेगहा एवमायो ।
-उ० ३६.१४६-१४६. ३. लोगेगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया ।
-उ० ३६.१३०, १३६, १४६. ४. उ० ३६.१३१, १४०, १५० (पृ० ६६, पा० टि० २ की तरह) ५. वासाई वारसा चेव उक्कोसेण वियाहिया । बेइंदियआउठिई अंतोमुहत्तौं जहन्निया ।।
-उ० ३६.१३२.
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