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२४८ ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन
५. आवश्यक छः नित्य-कर्म । ६. सामाचारी-सम्यक् दिनचर्या और रात्रिचर्या । ७. वसति या उपाश्रय-ठहरने का स्थान ।
८. आहार-खान-पान । विशेष साध्वाचार : _जिस आचार का साधु विशेष अवसरों पर आत्मा की विशेष शुद्धि के लिए विशेषरूप से पालन करता है उसे विशेष साध्वाचार कहा गया है। इसमें मुख्यरूप से निम्नोक्त विषयों पर विचार किया जाएगा:
१. तपश्चर्या-तप। २. परीषहजय-क्षुधादि बाईस प्रकार के कष्टों को सहना । ३. साधु की प्रतिमाएँ-तप-विशेष। ४. समाधिमरण-मृत्यु-समय विधिपूर्वक अनशनव्रत के साथ
शरीर-त्याग। विषय की अधिकता होने के कारण इस प्रकरण में साधु के केवल सामान्य आचार का ही वर्णन किया जाएगा और विशेष आचार का वर्णन अगले प्रकरण में किया जाएगा।
दीक्षा की उत्थानिका इसमें दीक्षा ग्रहण करने के पूर्व की स्थितियों का प्रस्तुतीकरण किया गया है। जैसे : दीक्षा लेने का अधिकारी, दीक्षा के पूर्व माता-पितादि की अनुमति आदि। दीक्षा लेने का अधिकारी :
संसार के विषयों से निरासक्त एवं मुक्ति का अभिलाषी प्रत्येक व्यक्ति इस दीक्षा को ग्रहण कर सकता है । इसमें जाति, कुल, आयु, लिङ्ग आदि का कोई प्रतिबन्ध नहीं है। संसार के विषय-भोगों में आसक्त व्यक्ति श्रेष्ठ जाति व कुल में उत्पन्न होकर भी इसके अयोग्य है। इसीलिए चाण्डाल जैसी नीच जाति में उत्पन्न हरिकेशिवल संसार के विषय-भोगों से निरासक्त होने के कारण
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