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प्रकरण ४ : सामान्य साध्वा चार
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पदार्थों को महामोह एवं महाभय को पैदा करनेवाले जानकर उसी प्रकार त्याग देना चाहिए जिस प्रकार हाथी बन्धन को तोड़कर वन में चला जाता है, ' मनुष्य वमन की हुई वस्तु को छोड़ देते हैं, सर्प केचुली को त्याग देता है, 3 रोहित मत्स्य जाल का भेदन करके चला जाता है, धूलि कपड़े से निकालकर फेंक दी जाती है, ५ क्रौञ्च पक्षी आकाश में अव्याहत गति से चला जाता है, हंस विस्तृत जाल का भेदन करके चला जाता है । इसके अतिरिक्त
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१. नागो व्व बंधणं छित्ता अप्पणो वसहि वए ।
जहित्तु संगं च महाकिलेसं० ।
-उ० १४.४८.
— उ० २१.११.
तथा देखिए - उ० १.१; ६.१५, ६१; १५.६ - १०,१६; १८.३१; १६. ६०; ३५.२-३ आदि ।
२. चिच्चा ण धणं च भारियं पव्वइओ हि सि अणगारियं ।
मातं पुणो विविए
तथा देखिए - उ० १२.२१-२२.
- उ० १०.२६.
३. जहा य भोई तणुयं भुयंगो निम्मोर्याण हिच्च पलेइ भुत्तो । एमए जाया पहंति भोए "
- उ० १४.३४.
तथा देखिए - उ० १६.८७.
४. छिदित्तु जालं अवलं व रोहिया मच्छा जहा कामगुणे पहाया ।
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५. इड्ढी वित्तं च मित्ते च पुत्तदारं च नायओ ।
रेणु व पडे लग्गं निद्धणित्ता ण निग्गओ ॥
- उ० १६.८८.
६. नहेव कुचा समइक्कमंता तयाणि जालाणि दलित्तु हंसा । पति पुत्ताय पई यमज्झं ते हूं कहं नानुगमिस्समेका ।
- उ० १४.३६.
७. बही ।
- उ० १४.३५.
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