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________________ प्रकरण ४ : सामान्य साध्वा चार [ २५१ पदार्थों को महामोह एवं महाभय को पैदा करनेवाले जानकर उसी प्रकार त्याग देना चाहिए जिस प्रकार हाथी बन्धन को तोड़कर वन में चला जाता है, ' मनुष्य वमन की हुई वस्तु को छोड़ देते हैं, सर्प केचुली को त्याग देता है, 3 रोहित मत्स्य जाल का भेदन करके चला जाता है, धूलि कपड़े से निकालकर फेंक दी जाती है, ५ क्रौञ्च पक्षी आकाश में अव्याहत गति से चला जाता है, हंस विस्तृत जाल का भेदन करके चला जाता है । इसके अतिरिक्त ६ १. नागो व्व बंधणं छित्ता अप्पणो वसहि वए । जहित्तु संगं च महाकिलेसं० । -उ० १४.४८. — उ० २१.११. तथा देखिए - उ० १.१; ६.१५, ६१; १५.६ - १०,१६; १८.३१; १६. ६०; ३५.२-३ आदि । २. चिच्चा ण धणं च भारियं पव्वइओ हि सि अणगारियं । मातं पुणो विविए तथा देखिए - उ० १२.२१-२२. - उ० १०.२६. ३. जहा य भोई तणुयं भुयंगो निम्मोर्याण हिच्च पलेइ भुत्तो । एमए जाया पहंति भोए " - उ० १४.३४. तथा देखिए - उ० १६.८७. ४. छिदित्तु जालं अवलं व रोहिया मच्छा जहा कामगुणे पहाया । Jain Education International ५. इड्ढी वित्तं च मित्ते च पुत्तदारं च नायओ । रेणु व पडे लग्गं निद्धणित्ता ण निग्गओ ॥ - उ० १६.८८. ६. नहेव कुचा समइक्कमंता तयाणि जालाणि दलित्तु हंसा । पति पुत्ताय पई यमज्झं ते हूं कहं नानुगमिस्समेका । - उ० १४.३६. ७. बही । - उ० १४.३५. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004252
Book TitleUttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanlal Jain
PublisherSohanlal Jaindharm Pracharak Samiti
Publication Year1970
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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