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उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन
इन तीन प्रकार की कर्म की अवस्थाओं में से तीसरी अवस्थावाले कर्मों का आगे विचार किया जाएगा। दूसरी अवस्थावा कर्मों का प्रकृत में कोई उपयोग नहीं है । अतः केवल प्रथम अवस्थावाले कर्मों का ही विचार यहाँ प्रस्तुत है । पहले जो कर्म की परिभाषा दी गई है वह भी प्रथम प्रकार के कर्मों की अवस्था को ही दृष्टि में रखकर दी गई है क्योंकि ग्रन्थ में जो भी कर्मबन्ध के सम्बन्ध में वर्णन मिलता है वह इसी अवस्थावाले कर्मों से सम्ब न्धित है । इसीलिए ग्रन्थ में कर्म को कर्मग्रन्थि ', कर्म कञ्चुक २, कर्म'रज', कर्मगुरु, कर्मवन " आदि शब्दों से कहा गया है । विषमता का कारण - कर्मबन्ध :
इष्टका संयोग, अनिष्ट का वियोग, सुख या दुःख की अनुभूति, स्वर्ग या नरक की प्राप्ति, ज्ञान व अज्ञान का आधिपत्य आदि जीव के किए हुए कर्मों के प्रभाव से होते हैं । देखते ही देखते राजा भिखारी बन जाता है और भिखारी राजा बन जाता है । एक आदमी दिन - भर कठोर परिश्रम करने के वावजूद कुछ नहीं प्राप्त कर पाता है और दूसरा आदमी घर बैठे ही बैठे अपार सम्पत्ति को प्राप्त कर लेता है । इसमें क्या कारण है ? इसका कारण है हमारे द्वारा
१. अट्ठविहकम्मठ निज्जरेइ ।
अहिस्स कम्मस्स कम्मगंठिविमोयणाए ।
२. तवनारायजुत्तेण भेत्तूण कम्मकंचुयं ।
— उ० २६.३१.
विहुहि रयं पुरे क
४. तओ कम्मगुरू जन्तू ।
३. तवस्सी वीरियं लद्धं संबुडे निद्धणे रयं ।
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- उ० २६.७१.
- उ० ६.२२.
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- उ० ३.११.
- उ० १०.३.
- उ० ७. ६.
५. कामभोगे परिच्चज्ज पहाणे कम्ममहावणं ।
-उ० १८.४६.
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