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प्रकरण ३ : रत्नत्रय
[ २२५ - विनय के पांच प्रकार-ग्रन्थ में गुरु के प्रति सम्मान प्रकट करने के पांच प्रकार बतलाए गए हैं: १. गुरु के आने पर खड़े होना (अभ्युत्थान), २. दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करना (अंजलिकरण), ३. बैठने के लिए आसन देना (आसनदान), ४. स्तुति (सम्मान) करना (गुरुभक्ति) और ५. भावपूर्वक सेवा करना (भावशुश्रूषा)। - अविनय व विनय का फल-ग्रन्थानुसार विनीत और अविनीत शिष्य के कर्त्तव्यों आदि का वर्णन करने के बाद अब अविनीत और विनीत शिष्यों को प्राप्त होने वाला फल बतलाते हैं। सर्वप्रथम अविनीत शिष्य को प्राप्त होनेवाला फल बतलाते हैं। जैसे :
१. जिस प्रकार सड़े कानों वाली कुतिया प्रत्येक घर से निकाल दी जाती है उसी प्रकार अविनीत शिष्य भी सर्वत्र अपमानित करके छात्रावास से निकाल दिया जाता है।२ २. जिस प्रकार कोई अडियल बैल गाडी में जोते जाने पर भी यदि नहीं चलता है तो उसे चाबुक आदि से मारा जाता है उसी प्रकार अविनीत शिष्य गुरु से प्रताड़ित होकर दुःखी होता है।३ ३. ज्ञानादि को प्राप्त नहीं करता है । ४. 'ज्ञानादि की प्राप्ति न होने से मुक्ति का भी अधिकारी नहीं होता है।
इसके विपरीत विनीत शिष्य निम्न फल को प्राप्त करता है : १. देखिए-प्रकरण ५, विनय-तप । २. जहा सुणी पूइकन्नी निक्कसिज्जई सव्वसो । • एवं दुस्सीलपडिणीए मुहरी निक्कसिज्जई॥
-उ० १.४. ३. खलुंके जो उ जोएइ विहम्माणो किलिस्सई । - असमाहिं च वेएइ तोत्तओ से य भज्जई॥
-उ० २७.३. ४. देखिए-पृ० २२४, पा० टि० ३. ५. देखिए -पृ० २१८, पा० टि० ३.
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