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२०२] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन
२. उपदेशरुचि-गुरु आदि के उपदेश से जीवादि तथ्यों में श्रद्धा होना।' इसकी उत्पत्ति में परोपदेश निमित्तकारण है।
३. आज्ञारुचि-गुरु आदि के आदेश (आज्ञा) से तथ्यों में श्रद्धा करना अर्थात गुरु ने ऐसा कहा है अतः सत्य है, ऐसी श्रद्धा होना।२ उपदेशरुचि में गुरु के उपदेश की प्रधानता रहती है और आज्ञारुचि में गुरु के आदेश की प्रधानता रहती है। उपदेशरुचि में गुरु तथ्यों को सिर्फ समझाता है और आज्ञारुचि में आदेश देता है कि तुम ऐसी श्रद्धा करो । यही दोनों में भेद है। ...
४. सूत्ररुचि-'सूत्र' शब्द का अर्थ है-अंग या अंगबाह्य जैनआगम सूत्र-ग्रन्थ । अतः सूत्र-ग्रन्थों के अध्ययन से जीवादि तथ्यों में श्रद्धा होना सूत्ररुचि है।
५. बीजरुचि-जो सम्यग्दर्शन एक पद-ज्ञान से अनेक पदार्थ. ज्ञानों में फैल जाता है उसे बीजरुचि कहते हैं। इस प्रकार
यो हि जातिस्मरणप्रतिभादिरूपया स्वमत्याऽवगतान् सद्भतान् जीवादीन् पदार्थान् श्रद्दधाति स निसर्गरुचिरिति भावः ।
-स्थानाङ्गसूत्र (१०.७५१) वृत्ति, पृ० ४७७. १. एए चेव उ भावे उवइठे जो सद्दहई । छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइ ति नायव्यो ।।
-उ० २८.१६. २. रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अव गयं होइ ।, आणाए रोयंतो सो खलु आणारुई नाम ।।
-उ० २८.२० जो हे उमयाणतो आणाए रोयए पवयणं तु । एमेव नन्नहत्ति य एसो आणारुई नाम ।।
--प्रज्ञापनासूत्र, १.७४.५ (पृ० १७६). ३. जो सुत्तमहिज्जतो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति नायव्वो ॥
-उ० २८.२१. ४. एगेण अणेगाई पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं । उदए व्व तेल्लबिंदु सो बीयरुइ त्ति नायव्यो ।
-उ०२८.२२.
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