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प्रकरण ३ : रत्नत्रय
[ २०६
' अङ्ग
:-विषयक श्रुतज्ञान
ग्रन्थों की संख्या १२ होने से भी १२ प्रकार का है तथा अङ्गबाह्य-ग्रन्थों की कोई सीमा नियत न होने से अङ्गबाह्य विषयक श्रुतज्ञान भी अनेक प्रकार का है ।' अङ्गग्रन्थों की प्रधानता होने से ग्रन्थ में समस्त श्रुतज्ञान को द्वादशाङ्ग का विस्तार बतलाया गया है । इसके अतिरिक्त द्वादशाङ्ग के वेत्ता को 'बहुश्रुत' कहा गया है तथा 'बहुश्रुत' के महत्त्व को प्रकट करने के लिए ग्रन्थ में निम्नोक्त १६ दृष्टान्तों से उसकी प्रशंसा की गई है : 3
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१. शंख में रखे हुए दूध की तरह अनिर्वचनीय शोभा-सम्पन्न, २. कम्बोजदेशोत्पन्न श्रेष्ठ अश्व की तरह कीर्ति - सम्पन्न, ३. श्रेष्ठ अश्व पर सवार सुभट की तरह अपराजेय, ४. हथिनियों से घिरे हुए साठ वर्ष के बलवान् हाथी की तरह अपने शिष्य परिवार से परिवृत्त, ५. तीक्ष्ण शृङ्ग ( सींग ) और उन्नत स्कन्धवाले बैल की तरह शोभा सम्पन्न, ६ तीक्ष्ण दंष्ट्रावाले प्रबल सिंह की तरह प्रधान, ७. शंख-चक्र-गदाधारी अप्रतिहत बलवान् योद्धा वासुदेव की तरह विजेता, ८. चौदह रत्नधारी व ऋद्धिधारी चक्रवर्ती राजा की तरह श्रेष्ठ, ६ हजार नेत्रों वाले वज्रपाणि देवाधिपति इन्द्र की तरह श्रेष्ठ, १०. अन्धकारविनाशक उदीयमान तेजस्वी सूर्य की तरह दीप्ति-सम्पन्न, ११. नक्षत्रों से घिरे हुए पूर्णमासी के चन्द्रमा की तरह शोभा सम्पन्न १२. अनेक प्रकार के धन-धान्य से भरे हुए सुरक्षित कोष्ठागार की तरह परिपूर्ण, १३. वृक्षों में श्रेष्ठ सुदर्शन नामधारी जम्बूवृक्ष की तरह श्रेष्ठ, १४. नीलवंत
१. श्रुतं मतिपूर्वं द्वयनेकद्वादशभेदम् ।
- त० सू० १.२०.
तथा देखिए - पृ० २०२, पा० टि० ३; पृ० २०३, पा०टि० १०
२. देखिए - पृ० ३, पा० टि० २.
३. जहा संखम्मि पयं निहियं दुहओ वि विराय | एवं बहुस्सु भिक्खू धम्मो कित्ती तहा सुयं ॥
समुद्द गंभीरसमा दुरासया अचक्किया केणइ दुप्पहंसया । सुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया ||
- उ० ११. १५-३१.
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