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उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन - १. केशि-गौतम संवाद में बतलाया गया है कि निश्चय से ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही मोक्ष के सद्भूत साधन हैं, अन्य बाह्य वेषभूषादि नहीं । ऐसी दोनों जैन उपदेशकों (भगवान् पार्श्वनाथ और महावीर) की प्रतिज्ञा है।'
२. मोक्षमार्गगति नामक २८वें अध्ययन के प्रारम्भ में कहा है'ज्ञान और दर्शन जिसके लक्षण हैं ऐसे चार कारणों से युक्त यथार्थ मोक्षमार्ग की गति को तुम मुझसे सुनो। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप-यह मोक्ष-मार्ग है। जो इस मार्ग का अनुसरण करता है वह सुगति२ (मोक्ष) को प्राप्त करता है। ऐसा भगवान जिनेन्द्र ने कहा है।"3 आगे इसी बात का स्पष्टीकरण करते हुए ग्रन्थ में लिखा है - 'ज्ञान से पदार्थों को जानता है, दर्शन से उन पर श्रद्धा करता है, चारित्र से कर्मास्रवों को रोकता है और तप से शुद्धता को प्राप्त करता है। इस तरह जो सब प्रकार के दुःखों से छुटकारा पाना चाहते हैं वे संयम और तप से पूर्वबद्ध कर्मों को नष्ट करते हैं। कर्मों के क्षय करने में विशेष उपयोगी होने के कारण यहाँ १. अह भवे पइन्ना उ मोक्खसम्भूयसाहणा। ___ नाणं च दंसणं चेव चरित्तं चेव निच्छिए ।।
-उ० २३.३३. २. चत्तारि सुग्गईओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सिद्ध सुग्गई, देवसुग्गई, मणुय. सुग्गई, सुकुलपच्चायाई।
- स्थानाङ्गसूत्र ४.१.२६. ३. मोक्खमग्गगई तच्चं सुणेह जिणभासियं ।
च उकारणसं जुत्तं नाणदंसणलक्खणं ।। नाणं च सणं चेव चरित्तं च तवो तहा । एयंमग्गमणुप्पत्ता जीवा गच्छंति सोग्गई ॥
-उ०२८.१-३. ४. नाणेण जाणई भावे दंसणेण य सरहे ।
चरित्तेण निगिण्हाइ तवेण परिसुज्झई ॥ खवेत्ता पुवकम्माई संजमेण तवेण य । सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा पक्कमंति महेसिणो ।।
-उ० २८ ३५-३६.
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