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१४० ] उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन
१. बकरा-जिस प्रकार बाहर से आने वाले प्रिय अतिथि के भोजन के निमित्त कोई बकरा अपने मालिक द्वारा विविध प्रकार के पक्वान्नों से पाला-पोसा जाता है और फिर उसके हृष्टपुष्ट हो जाने पर तथा अतिथि के आ जाने पर उसे मार डाला जाता है, उसी प्रकार विषयासक्त जीव भी मृत्युरूपी अतिथि के आजाने पर मृत्यू को प्राप्त करके दुःखों को झेलते हैं। २. काकिणी ( सबसे छोटा सिक्का )- जैसे एक काकिणी के लोभ से कोई जीव हजारों मुद्राएँ खो देते हैं वैसे ही थोडे से क्षणिक-सुख के पीछे मनुष्य सहस्रगुणे अधिक सुखों को खो देते हैं। ३. आम्रफल-भक्षण-जैसे कोई राजा चिकित्सक द्वारा बारम्बार मना किए जाने पर भी अल्पमात्र स्वाद के लोभ से आम्रफल खाकर मर जाता है वैसे ही थोड़े से स्वाद के लोभ से जीव अपने बहमूल्य जीवन को खो देते हैं। ४. तीन व्यापारीजैसे कोई तीन व्यापारी व्यापार के निमित्त विदेश में जाकर धन कमाते हैं। उनमें से एक मूलधन को सरक्षित लेकर, दूसरा मूलधन में वद्धि करके और तीसरा मूलधन को विनष्ट करके लौटता है। उसी प्रकार यह जीव भी मनुष्यजन्मरूपी मूलधन को लेकर चतुर्गतिरूप संसार में भ्रमण करता है। यदि मूलधन में वृद्धि करता है तो स्वर्गगति में जाता है और यदि मूलधन का विनाश करता है तो तिर्यञ्च या नरकगति में जाता है। .
उपर्युक्त चार दृष्टान्तों को समझने के बाद भी यदि कोई सम्यक आचरण न करके विषयों में ही आसक्त रहता है तो वह करुणायोग्य, लज्जालु, दीन और अप्रीति का पात्र होता है।'
इस प्रकार अन्य भारतीय धार्मिक-ग्रन्थों की तरह प्रकृत-ग्रन्थ में भी संसार को दुःखों से पूर्ण चित्रित किया गया है। इसमें जो सुख की अनुभूति होती है वह काल्पनिक एवं क्षणिक है । भगवान् १. आवज्जई एवमणेगरूवे एवं विहे कामगुणेसु सत्तो। अन्ने य एयप्पभवे विसेसे कारुण्णदीणे हिरिये वइस्से ।।
-उ० ३२.१०३. २. मनुस्मृति ४.१६०; भर्तृहरि-वैराग्यशतक ।
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