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१०६ ] - उत्तराध्ययन-सूत्र : एक परिशीलन .
क. जलचर तिर्यञ्च-जल में चलने-फिरने के कारण इन्हें जलचर तिर्यञ्च कहते हैं। इनके पाँच भेद गिनाए हैं। उनके नाम ये हैं-मत्स्य, कच्छप, ग्राह, मकर और संसुमार। ख. स्थलचर तिर्यञ्च-स्थल (भूमि) में चलने के कारण इन्हें स्थलचर तिर्यञ्च कहते हैं। इनमें कुछ चार पैरों वाले (चतुष्पाद) और कुछ रेंगने वाले (परिसर्प) हैं। चार पैरवालों में कुछ एक खुर (पैर के नीचे एक स्थल अस्थिविशेष, वाले हैं (जैसे-अश्व आदि), कुछ दो खुर वाले हैं (जैसे-गवादि), कुछ वर्तुलाकार (गंडीपद -गोल पैर वाले हैं (जैसे-हस्ती आदि) तथा कुछ नखों से युक्त पैर वाले (सनखपद) हैं (जैसे--सिंहादि पशू)। रेंगने वाले जीवों में कुछ भजाओं के सहारे रेंगते हैं (भजपरिसर्प, जैसे-गोधा-छिपकली आदि) और कुछ वक्षस्थल के सहारे रेंगते हैं (उरःपरिसर्प, जैसे - सर्प आदि)। ग. नभचर तिर्यञ्च-आकाश में स्वच्छन्द विचरण करने में समर्थ जीव नभचर तिर्यञ्च कहलाते हैं। ऐसे जीव मुख्यतः चार प्रकार के बतलाए गए हैं : १. चर्मपक्षी (चमड़े के पंखों वाले । जैसेचमगादड़, २. रोमपक्षी (हंस, चकवा आदि), ३. समुद्गपक्षी (जिनके पंख सदा अविकसित रहते हैं और डब्बे के आकार सदृश सदा ढके रहते हैं) और ४. विततपक्षी (जिनके पंख सदा खुले रहते हैं)। १. मच्छा य कच्छभा य गाहा य मगरा तहा । सुसुमारा य बोधव्वा पंचहा जलयराहिया ।।
-उ० ३६ १७२. २. चउप्पया य परिसप्पा दुविहा थलयरा भवे ।
चउप्पया चउविहा ते मे कित्तयओ सुण ।। एगखुरा दुखरा चेव गंडीपय सणप्पया। हयमाई गोणमाई गयमाई सीहमाइणो ॥ भओरगपरिसप्पा य परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई अहिमाई य एक्केक्का गहा भवे ॥
-उ० ३६.१७६-१८१. ३. चम्मे उ लोमपक्खी य तइया समुग्गपक्खिया। वियय पक्खी य बोधवा पक्खिणो य चउबिहा ॥
-उ० ३६.१८७.
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