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उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन
में एक जीव के एक साथ तीन शरीर होते हैं । औदारिक और वैक्रियक शरीर का अभाव सिर्फ मृत्यु के समय होता है । दूसरा जन्म लेने पर औदारिक और वैक्रियक में से कोई न कोई शरीर पुनः प्राप्त हो जाता है । साधारणतया मनुष्य और पशु-पक्षियों ( तिर्यञ्चों) में औदारिक- शरीर पाया जाता है । देव और नारकियों में वैक्रियक शरीर पाया जाता है । अतः संसारी जीवों को 'सशरीरी' या 'बद्ध' जीव कहने में कोई आपत्ति नहीं है ।
संसारी जीवों के विभाजन के स्रोत :
ग्रन्थ में संसारी जीवों के विभाजन के कई स्रोत हैं उनमें से कुछ निम्नोक्त हैं :
गमन करने की शक्ति' - जो जीव एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमन कर सकते हैं उन्हें एक विभाग में रखा जा सकता है और जो ऐसे सामर्थ्य वाले नहीं है उन्हें दूसरे विभाग में रखा जा सकता है । ग्रन्थ में इनके क्रमश: नाम त्रस और स्थावर दिए गए हैं। इसी विभाजन को मूल आधार मानकर आगे विभाजन किया गया है । यहाँ एक बात स्मरणीय है कि यद्यपि सभी जीव सक्रिय हैं परन्तु गतिशीलता के आधार पर जो विभाजन किया गया है वह वर्तमान में चलने-फिरने की शक्ति की अपेक्षा से है ।
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२. शरीर की स्थूलता और सूक्ष्मता - जिनका शरीर स्थूल है उन्हें एक विभाग में और जिनका शरीर सूक्ष्म (लघु) है उन्हें
१. संसारत्था उ जे जीवा दुविहा ते वियाहिया ।
तसा यथावरा चेव थावरा तिविहा तहि ॥
- उ० ३६.६८.
तथा देखिए - उ० ५.८; ८. १०; २५.२३; त० सू० २.१२.
२. ताणं थावराणं च सुहुमाणं बादराण य ।
- उ० ३५.६.
तथा देखिए - भा० सं० जै०, पृ० २१८ - २१६.
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