________________
ε६ ]
उत्तराध्ययन सूत्र : एक परिशीलन
रुचक, अंक, स्फटिक-लोहिताक्ष, मरकत-मसारगल्ल, भुजमोचक, इन्द्रनील, चन्दन गेरुक - हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिक, चन्द्रप्रभ, वैडूर्य, जलकान्त और सूर्यकान्त । खर- पृथिवी के इन ३६ प्रकारों में कठोर स्पर्शवाले धातु पाषाण, मणि आदि को गिनाया गया है । गोमेदक से लेकर अन्त तक के सभी भेद मणि-विशेष के नाम हैं । सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव एक ही प्रकार का है । "
२. अपकायिक जीव - जल ही है शरीर जिनका उन्हें अपकायिक जीव कहते हैं। सूक्ष्म-पर्याप्तक, सूक्ष्म अपर्याप्तक, बादरपर्याप्तक और वादर - अपर्याप्तक के भेद से पृथिवीकायिक की तरह इसके भी चार भेद किए गए हैं। बादर - पर्याप्तक जीवों के पांच भेद गिनाए हैं - शुद्धोदक (मेघ या समुद्रादि का जल ), अवश्याय ( ओस ), हरतनु, महिका और हिम (बर्फ) ।
3
३. वनस्पतिकायिक जीव - वनस्पति ( वृक्ष-पौधे आदि) ही है शरीर जिनका उन्हें वनस्पतिकायिक जीव कहते हैं । पृथिवी के भेदों की ही तरह इसके भी सूक्ष्म-पर्याप्तक, सूक्ष्म अपर्याप्तक, बादर-पर्याप्त और बादर - अपर्याप्तक के भेद से चार भेद किए गए हैं । बादर-पर्याप्तक को पुनः दो भागों में विभक्त किया गया है : १. साधारणशरीर ( जिनके शरीर में एक से अधिक जीवों
५
९. वही ।
२.
दुविहा आउजीवा उ
• ( शेष पृ० ६५, पा० टि० १ की तरह ) ।
- उ० ३६८४.
३. बायरा जे उ पज्जत्ता पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदय उस्से हरतणू महिया हिमे ||
- उ० ३६.८५.
४. 'हरतनु:' स्निग्धपृथिवीसमुद्भवः तृणाग्र बिन्दु:, 'महिका' गर्ममासेषु सूक्ष्मवर्षम् ।
- उ० ० वृ०, पृ० ३८१.
५. दुविहा वणसईजीवा (शेष पृ० ६५, पा० टि० १ की तरह ) ।
- उ० ३६.९२.
६. बायरा जे उपज्जत्ता दुविहा ते वियाहिया ।
साहारणसरीरा य पत्तेगा य तहेव य ॥
Jain Education International
- उ० ३६.६३.
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org