________________
( १५ )
सत्यसा मालूम होता है । परन्तु यह तोता तो वे मतलब स्वभाव ही से यह वाक्य बोला होगा ।
राजा इस प्रकार विचार कर ही रहा था कि तोता पुनः एक अन्योक्ति बोला- " ( इस वाक्य में मेंडक व हंसका परस्पर संवाद है )
मेंडक - हे पक्षी ! तूं कहां से आया है ? हंस- मैं अपने सरोवर से आया हूं । मेंडक - वह सरोवर कितना बडा है ?
हंस - बहुत ही बंडा है ।
मेंडक -- क्या मेरे घर से भी सरोवर बडा है ? हंस- हां, बहुत ही ।
यह सुनकर मेंडक हंसको गाली देने लगा कि " हे पापी ! तूं मेरे सन्मुख क्यों असत्य बोलता है ? धिक्कार है तुझे ! इस पर हंसको यही समझ लेना उचित है कि " क्षुद्रबुद्धि मनुष्य जरा सी भी कोई वस्तु पाता है तो भी वह बहुत अहंकार करता है.
1
यह अन्योक्ति सुनकर राजाने विचार किया कि "इस तोतेने मुझे निश्चय कूप मंडुक ( कुएके अन्दर रहनेवाला मेंडक ) बनाया है । आश्चर्य है कि यह उत्तम पक्षी भी मुनिराजकी भांति ज्ञानी है ।" राजा यह विचार कर ही रहा था कि तोता पुनः बोला । " मूर्खोके सरदार सदृश गंवारकी कैसी मूर्खता है ? कि जो अपने गांव ( खेडा- देहात ) को स्वर्गपुरी के