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कैसी है? मानो पृथ्वीभरमेंसे सारभूत निकाली हों । ऐसी स्त्रियां मुझे मिली, इसलिये देवकी मेरे ऊपर अपूर्व कृपा है। वैसे तो घर घर स्त्रियां हैं परन्तु इनके समान सुन्दर कहीं नहीं । ठीक है तारागण चन्द्रमा ही के साथ शोभा देते हैं अन्य ग्रहों के साथ नहीं'
... इस भांति विचार करता हुआ राजा मृगध्वजका मन वर्षाऋतुकी नदीके समान अहंकारसे उछलने लगा। इतने ही में उस आम्रवृक्ष पर बैठा हुआ एक सुन्दर तोता समयोचित बोलनेवाले पंडित के समान बोला कि “मनःकल्पित अहंकार किस क्षुद्रप्राणीको नहीं होता ? देखो ! कहीं आकाश अपने ऊपर न पड जाय इस भयसे टिटहरी भी अपने पैर ऊँचे करके सोती है।" ____ यह सुनकर राजाने विचार किया कि "अहो यह तोता कितना ढीठ है ? अहंकार करनेवाले मनको यह बिलकुल तुच्छ क्यों बतलाता है ? अथवा यह पक्षी जो कुछ बोलता है सो अजा-कृपाण, काकतालीय, घुणाक्षर व खलतिबिल्वं न्यायसे १ अचानक बकरीका आना और तलवार का पडना । . २ कौवेका वैठना और ताल वृक्षका गिरना । ३ लकडीमें रहनेवाले घुन ( काडा ) का कतरना और उसमें अक्षर
का आकार बनजाना। ४ गंजे मनुष्य का वृक्ष के नीचे बैठना और उसके सिर पर बेल फल (बिल्ला ) का गिरना।