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करने गया और हाथी हथिनियों के समान अपनी रानियोंके साथ जलक्रीडादिक अनेक प्रकारके आनन्द करने लगा। उद्यानमें भूमिरूपी स्त्रीके ओढनेके छत्रके समान एक विशाल सुन्दर आम्रवृक्ष था । उसे देखकर विद्याका संस्कार युक्त होनेके कारण राजा कहने लगा कि पृथ्वीके कल्पवृक्षके समान है आम्रवृक्ष ! तेरी छाया जगतको बहुत प्यारी लगती है, पत्तोंका समुदाय बड़ा ही मंगलिक गिना जाता है, यह प्रत्यक्ष देखाते हुए तेरे पुष्प (म्होरे) का समुदाय अनुपम फलोंकी वृद्धि करता है, तेरा सुन्दर आकार देखते ही मनुष्यका चित्त आकर्षित हो जाता है, तथा तूं अमृतके समान मधुर रसीले फल देता है, इसलिये बडे बडे वृक्षोंमें भी तुझे अवश्य श्रेष्ठ मानना चाहिये । हे सुन्दर आम्रवृक्ष ! अपने पत्र, फल, फूल, काष्ठ, छाया आदि संपूणे अवयवोंसे सर्व जीवों पर निशिदिन परोपकारमे रत! क्या तेरे समान अन्य कोई वृक्ष प्रशंसा करनेके योग्य है ? जो बडे बडे वृक्ष अपनको आम्रवृक्षके समान कहलवाते हैं उनके तथा उनकी प्रशंसा करनेवाले पापी, मिथ्यावादी कवियोंको धिक्कार है' .. इस भांति आम्रवृक्षकी स्तुति करके राजा सन्मानपूर्वक, जैसे कि देवतागण कल्पवृक्षके नीचे बैठते हैं, आम्रवृक्षकी छायाके आश्रयमें रानियों समेत बैठ गया । सम्पत्तिवान तथा मणिरत्नादि वस्तुओंसे अलंकृत इस प्रकार शोभायमान, मानों स्वयं मूर्तिमान श्रृंगाररस हो ऐसी सुशोभित अपनी रानियों को देख कर राजा मृगध्वज आश्चर्यसे विचार करने लगा कि 'ये स्त्रियां