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त्वा --ऊण-श्रुत्वा =सोऊण (१,६-६८ व २२,३०,३७ व ३६ आदि) । २।१।२६
कृत्वा =कादूण (४,२,५,११) । कृत्वा = काऊण (४,२,१४,४५) ।
संसृत्य-संसरिदूण (४,२,४,१४ व २१)। 'दक्षिण' शब्द में अ वर्ण दीर्घ और 'क्ष' के स्थान में ह होता है । ष० खं० में
प्रदक्षिणं = पदाहीणं (५,४,२८) । १।२।६ 'आचार्य' शब्द में चकारवर्ती आकार ह्रस्व व इकार भी होता है । ष० खं० में
आचार्येभ्यः -- आइरियाणं (१,१,१) । ११२।३५ 'वृष्टि' आदि शब्दों में ऋ के स्थान में इ, उ होते हैं। जैसे ष० खं० में
वृष्टिः = वुट्टि (५,५,७६ व ८८)। ११२१८३ 'मृषा' शब्द में ऋ के स्थान में उ, ओ और ई होता है । ष० ख० में ओ का उदाहरण
मृषा ==मोस (१,१,४६-५२) । ११२१८५ कुछ अन्य संयुक्त व्यंजनों मेंक्त-त्त---तिक्त--तित्त (१,६-१,३६)। युक्तं == युत्तं (५,५,६८)। क्रक्क-शशाना:-- सक्कीसाणा (५,५.७०)।
चक्र चक्क (४,१,७१)। क्ल - कक ---शुक्ल-सुक्क (१,१,१३६) । ग्र ग -ग्रन्थ ... गंध (४,५,४६; गंथ ४,१,५४ व ६७)। ग्र ---ग्ग-विग्रह विग्गह (१,१,६० व ४,२,५११) । त्त्व - च्च-तत्त्वं तच्च (५,५,५१)। त्य च-त्यक्त ... चत्त (४,३,६३)। त्व-त-त्वक् ..-तय (५,३,४ व २०)। त्र-त्त--क्षेत्रे -खेते (१,३,२,व ५,७,६)। त्र= त्थ-तत्र = तत्य (१,१,२ तथा ४,२,१,१ व ४,२,४,१) । थ्य-च्छ-मिथ्यात्वं मिच्छत्त (१,६-१,२१ व ५,५,१०६)। द्य=उज-उद्योत-उज्जोव (१,६-१,२१ व ५,५.११७)। द्ध- ज्झ-विशुद्धता=विसुज्झदा (३-४१) । द्वि-दु-द्विपद-दुवय (५,५,१५७) । ध्ययन= झेण--उपासकाध्ययन उवासयज्झेण (५,६,१६)। ध्य= झ-सिद्ध्यन्ति बुध्यन्ते सिझंति बुज्झंति (१,६-६,२१६ व २२०,२२६,२३३)
= क्क-तक=तक्क (५,५,६८)। क-क्ख-कर्कश= कक्खड (-6-१, ४० व ५,५,१३०)।
=ग्ग--वग्ग (१,२,५५ व ५६,६३,६८) । घंह-दीर्घः=दीहे (४,५,४५)।। र्चच्च-अर्चनीयाः अच्चणिज्जा (३-४२) ।
२८ / षट्खण्डागम-परिशीलन
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