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वादिन्,--वाच् (वि०)झूठ बोलने वाला,-व्रत (वि०) | अनेकशः (अव्य०) 1 कई बार, बारंबार-अनेकशो
अपने वचन या प्रतिज्ञा का पालन न करने वाला। निजितराजकस्त्वम्-भट्टि २।५२; 2 विविध रीति अन्तुः [ न० त०] अनुपयुक्त ऋतु, अनुचित समय, अस- से, 3 बड़ी संख्या में या बड़े परिमाण में-पुत्रा अनेक
मय । सम-कन्या वह कन्या जो अभी रजस्वला न शो मृता दाराश्च हि०१। हुई हो।
| अनेकः [ ने एड:-न० त०] मूर्ख पुरुष, अज्ञानी व्यक्ति, अनेक (वि.) नि० त०] 1 जो एक न हो, एक से अधिक, नूढ़ । सम० --मूक (वि.) गूंगा और बहरामकता
बहुत से,--अनेकपितृकाणां तु पितृतो भागकल्पना- __ श्च द्यतु दोषरसम्मतान्-का०७ 2 अंधा 3 बेईमान या० २११२०; कि० १११६; कई, कई एक 2 अलग- दुष्ट, दुःशील । अलग, भिन्न भिन्न । सम०-अक्षर, अच् (वि.) | अनेनस् (वि.) [न० ब०] निष्पाप, कलङ्करहित । एक से अधिक अक्षर या स्वर वाला, नाना अक्षर | अनेहस (पु.) [न हन्यते-हन्+असि धातोःएहादेशःसहित,--अंत (वि.) 1 अनिश्चित, संदिग्ध---अस्थिर- ना+रह+ अस् ] (हा-हसो आदि) समय, काल । स्यादित्यव्ययमनेकांतयाचकम् 2=तु० अनेकांतिक अनेकांत (वि.) [न० त०] परिवर्त्य, अनिश्चित, अस्थिर, (-तः) 1 अनिश्चित अवस्था, स्थायित्व का अभाव सामयिक । 2 अनिश्चितता, अनावश्यक अंश, जैसे कि कई 'अनुबंध' | अनकांतिक (वि.) [न +एकांत+ठक्-न० त०] 'बादः संशयवाद, स्याद्वाद, वादिन् (पु०) स्याद्वादी, (स्त्री० --की) 1 अस्थिर, जो बहुत आवश्यक न हो जैनियों के स्याद्वाद को मानने वाला, अर्थ (वि०) 2 (तर्क० में) हेत्वाभास के मुख्य पाँच भागों में से 1 एक से अधिक अर्थ वाला, समनाम जैसे कि गो, एक, अन्यथा यह 'सव्यभिचार' कहलाता है, और तीन अमत, अक्ष आदि .. अनेकार्थस्य शब्दस्य-काव्य. २; प्रकार का है:-(क) 'साधारण' जहाँ कि हेतु दोनों 2 'अनेक' शब्द के अर्थ वाला 2 बहुत से प्रयोजन ओर-स्वपक्ष, तथा विपक्ष में पाया जाय, फलतः तर्क या उद्देश्य रखने वाला (-र्थः) पदार्थों का अतिसामान्य हो जाय, (ख) 'असाधारण' जहाँ हेतु केवल बाहल्य, विषयों की विविधता,-आश्रय,-आश्रित पक्ष में ही पाये जायें फलतः तर्क अतिसामान्य न हो, (वि.) (वैशे०) एक से अधिक स्थानों (जैसा कि (ग) 'अनुपसंहारी' जहाँ पक्ष में प्रत्येक ज्ञात बात तो 'संयोग' या 'सामान्य') पर रहने वाला,-गुण (वि०) सम्मिलित है, परन्तु तों की अभी समाप्ति नहीं बहुत प्रकार का, विविध प्रकार का, विभिन्न भेदों का,गोत्र (वि०) दो कुलों से संबंध रखने वाला, एक | अनक्यम् [न० त०] 1 एकता का अभाव, बहुवचनता 2 तो अपने कुल से (जब तक कि गोद न लिया गया | एकत्व की कमी, अव्यवस्था 3 अशान्ति, अराजकता। हो), तथा गोद लिये जाने पर गोद लेने वाले पिता के | अनंतिम् [ न० त०] परंपरागत प्रामाणिकता का अभाव, कुल से,--चित्त (वि.) चंचलमना,-ज (वि) एक से या जहां इस प्रकार की स्वीकृति अपेक्षित है। अषिकवार उत्पन्न, -जः पक्षी, -प: हाथी तु० अनो (अव्य०) [न० त०] नहीं, न । 'द्विप' से, वन्येतरानेकपदर्शनेन-रघु० ५।४७; शि० अनोकशायिन् (पुं०-यो) [न० त०] घर में न सोने ५।३५, १२।७५; – मुख (वि.) [स्त्री०-खो] वाला, भिक्षुक । (वि.) 1 बहुत मुंह वाला 2 तितर बितर, बहुत सी अनोकहः [अनसः शकटस्य अकं गति हन्ति-हन्+3] वृक्ष, दिशाओं में फैलने वाला-(बलानि) जगाहिरेऽनेक. ---अनोकहा कम्पितपुष्पगंधी-रघु० २।१३, ५।६९। मुखानि मार्गान-भट्टि. २१५४; -युविजयिन, - | अनौचित्यम् [ना+उचित+ध्या ] अनुपयुक्तता, विजयिन् (वि.) बहुत से युद्धों का विजेता, --रूप __अनुचितता-अनौचित्यादृते नान्यद्रसभंगस्य कारणम्(वि.) 1 नाना रूपों का, बहुत रूपों वाला, 2 नाना का०७। प्रकार का 3 चंचल, परिवर्तनीय विविध स्वभाव वाला | अनौजस्यम् [नश् +ओजस्+ज्य ] शक्ति सामर्थ्य या –वेश्यांगनेव नपनीतिरनेकरूपा पंच० १४२५, बल को अभाव; सा०६०-दोगत्यारितौजस्य दैन्यं -लोचनः शिवजी, इन्द्र,-वचनम् बहुवचन, द्विवचन, मलिनतादिकृत् । -वर्ण (वि.) एक से अधिक राशियों वाला-विष अनौडत्यम् निश+उद्धत+ध्या] 1 अहंकार से मुक्ति, (वि.) विविध, विभिन्न,-शफ (वि.) फटे हुए खुरों शालीनता, विनय; 2 शान्ति, -नदीरनौद्धत्यमपड़ता
वाला, साधारण (वि.) बहुतों के लिए सामान्य । महीं-कि० ४१२२। भनेकपा (अव्य.) [नश+एक+धा] विविष रीति से, | अनौरस (वि.) [न० त०] जो औरस-अर्थात विवाहिता नाना प्रकार से;-जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकषा-भगः । पत्नी से उत्पन्न न हो, अपना भी न हो, (पूत्र के
रूप में) गोद लिया हुआ।
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