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( ३३)
( ख ) दो स्वरों के मध्य में आए हुए क, ग, च, ज, त, द, प, ब, य श्रौर व का लोप होता है ' ।
सं०
लोक
प्रा०
लोअ
नगर
शची
गज
रसातल
प्रा०
मयण
नयर
रिउ
सई
विउह
गश्र
विश्रोग
रसायल
वलयाणल
लोप करते समय जहाँ अर्थ भ्रान्ति की सम्भावना हो वहाँ लोप नहीं करना चाहिए। जैसे :- सुकुसुम, प्रयाग, सुगत, सचाप, विजय, सुतार, विदुर, साप, समवाय, देव, दानव श्रादि ।
सं०
मदन
रिपु
विबुध
वियोग
वडवानल
पालि, शौरसेनी मागधी, पैशाची, चूलिका-पैशाची और अपभ्रंश भाषाओं में यह नियम सार्वत्रिक नहीं - सापवाद है । इसे यथास्थान सूचित करेंगे ।
( ख ) के अपवाद
उपर्युक्त लोप का नियम, तथा इस प्रकरण में आनेवाले नियम और जहाँ कोई विशेष विधान सूचित न किया गया हो ऐसे दूसरे भी सामान्य और विशेष नियम पैशाची भाषा में नहीं लगते २ ।
R
पैशाची
मकरकेतु
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प्राकृत
मयरकेउ
सगरपुत्तवचन
सयरपुत्तवयण
विजयसेन
विजय से
लपित
लवि
१. हे० प्रा० व्या० ८ १/२७७ । २. हे० प्रा० व्या० ८|४| ३२४ |
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