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तीसरा पाठ
वर्तमानकाल सर्व पुरुष )ज्ज
सर्व वचन ज्जा 'ज्ज' तथा 'ज्जा' प्रत्ययों के लगने से पूर्व 'अंग' के अन्त्य 'अ' को 'ए' होता है।
वंद् + अ + ज्ज = वंदेज्ज।
वंद् + अ + ज्जा = वंदेज्जा। १. हे० प्रा० व्या० ८।३।१७७ । २. हे० प्रा० व्या० ८।३।१५६ ।
३. पुरुषबोधक प्रत्यय और स्वरान्त धातुओं के बीच में ज्ज तथा ज्जा दोनों में से किसी एक प्रत्यय के लगाने से भी रूप बन सकते हैं। जैसे:हो+इ= हो+ज्ज + इ = होज्जइ अथवा होइ । हो + इ = हो+ज्जा + इ = होज्जाइ अथवा होइ -हे० प्रा० व्या० ८।३।१७८ । विकरण लगने के पश्चात् :हो + अ + इ = हो + अ + ज्ज +इ= होएज्जइ, होअइ। हो+अ + इ = हो + अ + ज्जा + इ=होएज्जाइ, होअइ। होज्जइ अथवा होएज्जइ के साथ श्रीज्ञानेश्वरप्रणीत गीताजी (चौदहवां शतक) में 'अयेक्षिजे', 'मथिजे', 'भोगिजे', 'कीजे', 'किजसी' 'सांडिजे' ऐसे अनेक क्रियापद आते हैं वे तथा होजे, थजे, करज, चालजे, देजे, लेजे इत्यादि वर्तमान में प्रचलित गुजराती भाषा के क्रियापद के रूप बिल्कुल मिलते-जुलते हैं ।
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